Tuesday, May 7, 2024
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कालाष्टमी पर जानिए कैसे हुआ था काल भैरव का अवतरण

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Kalashtami 2023: हर साल ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस साल 12 मई यानि की आज कालाष्टमी (Kalashtami 2023) मनाई जा रही है। इस दिन  काशी के कोतवाल कहे जाने वाले बाबा काल भैरव की पूजा की जाती है। यदि कोई व्यक्ति असीम शक्ति पाना चाहता है तो आज के दिन उसे काल भैरव की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करनी चाहिए। जिन्हें तांत्रिक विद्या प्राप्त करना होता है या तंत्र साधना सीखना चाहते हैं वे आज शाम के समय काल भैरव की पूजा करते हैं।

कालाष्टमी की पूजा मुहूर्त (Kalashtami 2023) 

कालाष्टमी 12 मई को सुबह 09 बजकर 06 मिनट से शुरू होकर 13 मई 2023 को सुबह 06 बजकर 50 मिनट तक रहेगी। रात में ही काल भैरव की पूजा करना शुभ माना जाता है इसलिए कालाष्टमी का व्रत आज ही रखा जायेगा।

कालाष्टमी की पूजा विधि 

कालाष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। काल भैरव के मंदिर या घर में उनकी तस्वीर को चौकी पर स्थापित करें। इस दिन भगवान भोलेनाथ के साथ माता पार्वती और भगवान गणेश की भी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। काल भैरव की तस्वीर के साथ-साथ भोलेनाथ, माता पार्वती और गणपति की फोटो भी जरुर रखें। घर के मंदिर में दीपक जलायें। काल भैरव को दूध, दही धूप, दीप, फल, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करें। उनकी पूजा में उड़द दाल और सरसों का तेल काल भैरव पर जरूर अर्पित करें। पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करें। बाबा काल भैरव का ध्यान करते हुए हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प लें। काल भैरव की आरती करें।

कालाष्टमी की व्रत कथा 

भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के बीच बहस छिड़ी कि कौन श्रेष्ठ है। ऐसे में तीनों देवताओं में श्रेष्ठ साबित होने के लिए बैठक रखी गई इस बैठक में अन्य देवता शामिल हुए। प्रत्येक देवता से पूछा गया कि तीनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने जवाब तीनों के सामने प्रस्तुत किएष उन देवताओं के विचारों से भगवान शिव और भगवान विष्णु तो सहमत थे। लेकिन ब्रह्मा जी ने क्रोध में आकर भगवान शिव को अपशब्द कह दिए।

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अपशब्द सुनने के बाद भगवान शिव ने इसे अपना अपमान समझा जिसके कारण उन्हें अत्यंत क्रोध आ गया। इसी गुस्से के कारण भगवान शिव के रौद्र रूप भैरव का जन्म हुआ।  शिव के भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है. जिसके हाथ में छड़ी थी, इस अवतार को महाकालेश्वर भी कहा जाता है। भगवान शिव का रौद्र रूप देखकर बैठक में मौजूद सभी देवता घबरा गए। भैरव इतने गुस्से में थे कि उन्होंने भगवान ब्रह्मा के 5 सिर में से 1 सिर काट के अलग कर दिया जिसके बाद भगवान ब्रह्मा के 4 ही सिर बचे। काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का आरोप लगा। भगवान ब्रह्मा ने भैरव बाबा से माफी मांगते हुए अपनी गलती स्वीकारी। फिर ब्रह्मा ने काल भैरव से अपनी गलती मानी तब जाकर भगवान शिव अपने असली अवतार में आए।

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