Saturday, May 18, 2024
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रोहतक में मासूमो का खतरनाक है स्कूली सफर, भरे ऑटो और ई-रिक्शों से बच्चे पहुंच रहे स्कूल

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शहर के दर्जनों स्कूलों में स्कूली बच्चों के खचाखच भरे ऑटो से सफर किए जाने के दृश्य आम हैं। भले ही बच्चों को सुरक्षित तरीके से घर से स्कूल और स्कूल से घर तक पहुंचाने के लिए सख्त नियमों की बात की जाती हो लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाता है। स्कूल संचालकों को इस बात की कोई चिंता नहीं है।

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राेहतक। रोहतक में इस समय खचाखच स्कूली बच्चों से भरे ऑटो और ई-रिक्शा के दृश्य आम हैं। यह स्थिति बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन इसे रोकने की व्यवस्थित पहल यातायात विभाग नहीं दिखाता है। स्‍कूल बसों में खचाखच बच्चे, ऑटो रिक्शा में भी क्षमता से अधिक बच्चे बैठाए जा रहे हैं। कहीं न कहीं यह सफर बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। इसके लिए जहां एक ओर जिला प्रशासन कसूरवार है वहीं दूसरी ओर अभिभावक भी कम जिम्मेदार नहीं है।

वहीँ आरटीए कार्यालय में करीब एक हजार स्कूल वाहन पंजीकृत है। इसके बाद भी बच्चे ऑटो, ई-रिक्शा से स्कूल जा रहे है। जिनको लेकर उनकी सुरक्षा पर हर वक्त खतरा बना रहता है। इस विषय पर न तो स्कूल संचालक ध्यान दे रहे है और न ही अभिभावक। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि बच्चों को स्कूल ले जाने वाले प्राइवेट वाहन के साथ कभी कोई हादसा हुआ तो उसका जिम्मेदारी कौन होगा। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिन प्राइवेट वाहनों से बच्चे स्कूल पहुंच रहे है, उन पर न तो स्कूल का नाम लिखा होता है और न परिवहन विभाग के मानक पूरे हैं। ऐसे में संबंधित विभाग के अफसरों ने कार्रवाई का मन बना लिया है। जबकि नियमानुसार स्कूल वाहन पीले रंग का होना चाहिए।

मानकों के अनुसार स्कूल वाहन पीले कलर का होना चाहिए। पुलिस कंट्रोल रुम, फायर विभाग, एबुलेंस, स्कूल का फोन नंबर अंकित होना चाहिए। वाहन में स्पीड गर्वनर लगा होना चाहिए। खिड़कियों पर रेलिंग लगी होनी चाहिए। जीपीएस लगा होना चाहिए। सीसीटीवी कैमरा होना चाहिए। सात सीटर वाहनों में 18 से 20 बच्चे बैठते हैं। परिवहन विभाग द्वारा जहां ईको कार को सात सवारियों में पास करने के साथ ही उसको परमिट दिया जाता है।

वहीँ सात सवारियों से अधिक होने पर कार्रवाई का प्रावधान है। लेकिन स्कूली बच्चों को लाने ले जाने में लगी ईको कार में 18 से 20 बच्चों को बैठाया जाता है। वहीं, ई रिक्शा में भी सात से आठ बच्चों को बैठाया जाता है। इससे बच्चों को दिक्कत भी होती है। बच्चों को होने वाली दिक्कतों को लेकर न तो परिवहन विभाग के अफसर ध्यान देते और न ही स्कूल संचालक। लेकिन प्राइवेट वाहन चालक परिवहन विभाग के इन नियमों की अनदेखी कर बच्चों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं।

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