Wednesday, May 8, 2024
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रथ यात्रा में अपनी मौसी के घर क्यों जाते हैं भगवान जगन्नाथ

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Jagannath Rath Yatra: हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) निकाली जाती है। इस साल 20 जून 2023 को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलेगी। 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ओडिशा के पूरी में बहुत ही धूमधाम के साथ इस यात्रा को निकाला जाता है। रथ यात्रा से एक दिन पहले श्रद्धालुओं के द्वारा गुंडीचा मंदिर को धुला जाता है। इस परंपरा को गुंडीचा मार्जन कहा जाता है।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा होते हैं शामिल 

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होते हैं। रथ यात्रा के दौरान पूरी श्रद्धा और विधि विधान के साथ भक्तजन तीनों की आराधना की जाती है और तीनों के भव्य एवं विशाल रथों को पुरी की सड़कों में निकाला जाता है। बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ कहा जाता है, जो यात्रा में सबसे आगे चलता है और सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है जो कि मध्य में चलता है। जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’ या ‘गरुड़ ध्वज’ कहते हैं, जो सबसे आखिरी में चलता है। हर साल यह पर्व लाखों श्रद्धालुओं, शैलानियों एवं जनमानस को अपनी ओर आकर्षित करता है।

रथ यात्रा से जुड़ी कथा 

कहते हैं कि एक बार गोपियों ने माता रोहिणी से कान्हा की रास लीला के बारे में जानने का आग्रह किया। उस समय सुभद्रा भी वहीं मौजूद थीं। तब मा रोहिणी ने सुभद्रा के सामने भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ रास लीला का बखान करना उचित नहीं समझा, इसलिए उन्होंने सुभद्रा को बाहर भेज दिया और उनसे कहा कि अंदर कोई न आए इस बात का ध्यान रखना।

उसी वक्त कृष्ण जी और बलराम सुभद्रा के पास पधार गए और उनके दायें-बायें खड़े होकर मां रोहिणी की बातें सुनने लगे। इस बीच देव ऋषि नारद वहां उपस्थित हुए। उन्होंने तीनों भाई-बहन को एक साथ इस रूप में देख लिया। तब नारद जी ने तीनों से उनके उसी रूप में उन्हें दैवीय दर्शन देने का आग्रह किया। फिर तीनों ने नारद की इस मुराद को पूरा किया। अतः जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों (बलभद्र, सुभद्रा एवं कृष्ण जी) के इसी रूप में दर्शन होते हैं।

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रथ यात्रा को लेकर माना जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान रथ पर सवार होकर भगवान जगन्नाथ मौसी के घर गुंडिचा जाते हैं। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना गया है। यहां भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ जाते हैं और पूरे एक हफ्ते तक ठहरते हैं। यहां उनका खूब आदर-सत्कार होता है और मौसी से लाड-दुलार मिलता है। ऐसी मान्यता है कि मौसी के घर भगवान खूब पकवान खाते हैं, जिससे वो बीमार भी पड़ जाते हैं। भगवान को ठीक करने के लिए उन्हें पथ्य का भोग लगाया जाता है और पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद ही भगवान भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके बाद जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है।

 

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