Saturday, May 18, 2024
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जानिए भोलेनाथ के शारीरिक श्रृंगार और उसके रहस्य के बारें में

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Sawan Special: सावन के महीने में इन दिनों भक्त अपने भोलेनाथ की भक्ति में पूरी तरह से लीन है। जो भी सच्चे मन से भोलेनाथ की पूजा करता है उसकी मनचाहे मुरादें पूरी होती हैं। महादेव की शरण में देवता आए हो या फिर असुर उन्होंने किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया। उन्होंने सब पर अपनी कृपा बरसाई।

भोलेनाथ अनेकों प्रतीकों का योग हैं और इन प्रतीकों मे कई रहस्य छिपे हुए हैं। भगवान शिव का नाम आते ही मन में एक वैरागी पुरुष की छवि उभर आती है, जिन्होंने न जाने कितनी ही विचित्र चीजों को अपने शृंगार के रूप में धारण किया हुआ हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव जी के शरीर पर मौजूद हर एक प्रतीक का एक विशेष महत्त्व और प्रभाव है।

शीश पर गंगा- जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिए माता गंगा का आव्हान किया गया तब धरती गंगा नदी के आवेग को सहने में असमर्थ थी। इसी वजह से महादेव ने  मां गंगा को अपनी जटाओं में  स्थान दिया। इस बात से यह सिद्ध होता है कि दृढ़ संकल्प के माध्यम से किसी भी अवस्था को संतुलित किया जा सकता है।

शशिशेखर-  स्वभाव से शीतल चंद्रमा को धारण करने का अर्थ है कि कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न होए लेकिन मन को हमेशा अपने काबू में रखना चाहिए।

जटा- महादेव की जटाओं को वट वृक्ष की संज्ञा दी गई है जो समस्त प्राणियों का विश्राम स्थल है। माना जाता है कि बाबा की जटाओं में वायु का वेग भी समाया हुआ है।

नागदेवता–  भगवान शिव के गले में नागदेवता विराजमान है। पुराणों में वर्णन है कि समुद्र मंथन के समय इन्होंने रस्सी के रूप में कार्य करते हुए सागर को मथा था। वासुकी नाम का यह नाग शिव का परम भक्त था। इनकी भक्ति से ही प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में आभूषण की तरह लिपटे रहने का वरदान दिया।

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डमरू-  भगवान शिव के हाथों में विद्यमान रहने वाले डमरू को बजने से आकाश, पाताल एवं पृथ्वी एक लय में बंध जाते हैं। ब्रह्म स्वरूप डमरू नाद सृष्टि सृजन का मूल बिंदू हैं।

त्रिशूल- भगवान शिव का त्रिशूल सत, रज और तम गुणों के सांमजस्य को दर्शाता है। यह बताता है कि इनके बीच सांमजस्य के बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं है।

रुद्राक्ष- भगवान शिव ने संसार के उपकार के लिए कई सालों तक तपस्या की थी। उसके बाद जब उन्होंने अपनी आंखें खोली, तो उनके नेत्र से कुछ आंसू जमीन पर गिर गए। इन बूंदों से रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। सच्चे मन से भगवान भोले की आराधना करने के बाद रुद्राक्ष धारण करने से तन-मन में सकारात्मकता का संचार होता है।

 

 

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