रोहतक। डेरा मुखी राम रहीम एक बार फिर राजस्थान चुनाव से 5 दिन पहले बाहर आ गया है और उसे इस बार 21 दिन की फरलो मिली है। आपको बता दें कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम रोहतक की सुनारियां जेल में बंद है और उसने जेल प्रशासन से फरलो के लिए अर्जी लगाई थी। इससे पहले भी राहत के नाम पर कई राम रहीम को जेल से बाहर भेजा गया है। वह इस समय वो 8वीं बार जेल से बाहर आ चुका है।
बरनावा आश्रम में रहेगा राम रहीम
आपको बता दें अलग-अलग मामलों में सजायाफ्ता मुजरिम राम रहीम को 30 महीने में 8वीं बार पैरोल मिली है। राम रहीम को दो साध्वियों के यौन शोषण से जुड़े केस, पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और डेरा सच्चा सौदा के मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या से जुड़े मामलों में उम्रकैद की सजा हो चुकी है। अब इस जांच के बीच ही समय-समय पर राम रहीम को जेल सजा से राहत मिलती रही। कभी इसे पैरोल का नाम दिया गया तो कभी फरलो का। राम रहीम इस बार भी अपनी फरलो के दौरान यूपी के बागपत स्थित बरनावा आश्रम में रहेगा। इससे पहले इसी साल राम रहीम को 3 बार पैरोल मिल चुकी है। पैरोल खत्म होने के बाद उसकी ओर से फरलो की अर्जी लगाई गई, जिसे मंजूर कर लिया गया।
राजस्थान का चुनाव कनेक्शन
राम रहीम को इस बार राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए 25 नवंबर को होने वाली वोटिंग से 5 दिन पहले पैरोल मिली है। राम रहीम राजस्थान में श्रीगंगानगर जिले के गुरुसर मोडिया का रहने वाला है। वहां गांव में उसका बड़ा आश्रम बना हुआ है। राजस्थान के हरियाणा बॉर्डर से लगते श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू और दूसरे कई जिलों में राम रहीम के अनुयायियों की अच्छी-खासी संख्या है। इन इलाकों में राम रहीम के डेरे सच्चा सौदा से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। इससे पहले भी पंजाब के विधानसभा चुनाव और हरियाणा में आदमपुर-ऐलनाबाद के विस उपचुनाव और नगरीय निकाय चुनाव से पहले राम रहीम को पैरोल देने के आरोप हरियाणा की मनोहर सरकार पर लगते रहे हैं।
नियमों के तहत मिली फरलो
डेरा सच्चा सौदा के प्रवक्ता जितेंद्र खुराना के अनुसार, कानून के तहत ही कैदी को जेल से बाहर आने की अनुमति मिलती है। जितेंद्र खुराना ने बताया कि जो भी जेल के अंदर होता है, उन्हें एक साल के अंदर 70 दिन की पैरोल दी जाती है। इसी के साथ कैदी को 21 से 28 दिन की फरलो मिलना उनका अधिकार है। प्रवक्ता ने कहा कि जेल मैनुअल के मुताबिक डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पैरोल दी गई है। यह पूरी तरह से कानून के दायरे में है। उन्होंने कहा कि साढ़े चार महीने पहले राम रहीम को 40 दिन की पैरोल दी गई थी उसमें से जो शेष बची थी। वहीं फरलो राम रहीम को अब दी गई है।
कब-कब जेल से बाहर निकला राम रहीम?
- 24 अक्टूबर 2020 : पहली बार गुरमीत राम रहीम को गुरुग्राम के अस्पताल में भर्ती बीमार मां से मिलने के लिए 1 दिन की पैरोल दी गई।
- 21 मई 2021 : दूसरी बार राम रहीम को फिर से बीमार मां से मिलने के लिए 12 घंटे की पैरोल दी गई।
- 7 फरवरी 2022 : तीसरी बार गुरमीत राम रहीम को परिवार से मिलने के लिए 21 दिन की फरलो मिली।
- जून 2022 : चौथी बार राम रहीम को 30 दिनों के लिए पैरोल दे दी गई. इस दौरान वो बागपत के आश्रम में रहा।
- 14 अक्टूबर 2022 : पांचवीं बार डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को 40 दिनों के लिए पैरोल दी गई। इस दौरान उसने बागपत के आश्रम से 3 म्यूज़िक वीडियो भी जारी किए।
- 21 जनवरी 2023 : छठीं बार शाह सतनाम सिंह की जयंती में शामिल होने के लिए राम रहीम को 40 दिन की पैरोल मिली।
- 20 जुलाई 2023 : सातवीं बार राम रहीम को 30 दिन की पैरोल पर जेल से बाहर आने की इजाजत मिली।
- 21 नवंबर 2023 : आठवीं बार राम रहीम को 21 दिन की फरलो मिली है जिसमे वह फिर बागपत के बरनावा आश्रम में रहेगा।
पैरोल और फरलो का अंतर समझिए
यहां ये समझना जरूरी है कि फरलो और पैरोल में अंतर होता है। एक तरफ पैरोल तो सजा मिलने के एक साल बाद भी मिल सकती है, लेकिन फरलो सिर्फ उन्हीं कैदियों को दी जाती है जिनकी सजा कई सालों की रहती है।
क्या है पैरोल के नियम
पैरोल किसी भी कैदी, सजा पा चुके शख्स या विचारधीन को मिल सकता है। इसकी कुछ जरूरी शर्तें होती हैं. किसी भी कैदी को सजा का एक हिस्सा पूरा करने के बाद और उस दौरान उसके अच्छे व्यवहार को देखते हुए पैरोल दी जा सकती है। कैदी की मानसिक स्थिति बिगड़ने पर, कैदी के परिवार में अनहोनी होने पर, नजदीकी परिवार में किसी की शादी होने पर पैरोल दी जा सकती है। कई बार कुछ जरूरी कामों को निपटाने के लिए कैदी को पैरोल पर निश्चित अवधि के लिए जेल से छोड़ा जाता है। विशेष हालात होने पर जेल अधिकारी ही सात दिन तक की पैरोल अर्जी को मंजूर कर सकते हैं।
इन्हें नहीं मिलती पैरोल
कारागार अधिनियम 1894 के तहत पैरोल दी जाती है। हालांकि किसी कैदी को पैरोल से इनकार भी किया जा सकता है। पैरोल को मंजूरी देने वाला अधिकारी यह कहते हुए मना कर सकता है कि कैदी को रिहा करना समाज के हित में नहीं होगा। आमतौर पर पैरोल मौत की साज पाए दोषी, आतंकवाद के दोषी या फिर जेल से रिहा होने पर भागने की संभावना वाले कैदी को नहीं दी जाती है। अनलॉफुल एक्टिविटि प्रिवेंशन एक्ट के तहत सजा काट रहे अपारधियों को भी पैरोल नहीं दी जाती है। पैरोल के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम है। जो कैदी पैरोल पर रिहा होता है उसे कुछ शर्तों का पालन करना जरूरी होता है। रिहाई के दौरान कैदी को नजदीकी थाने या बताए गए अधिकारी के समक्ष समय-समय पर हाजिरी भी देनी होती है। पैरोल के दो मकसद है कैदी को अपने परिवार और समाज से जुड़े कुछ जरूरी काम निपटाने का मौका मिलता है। दूसरा इसे अपराधियों में सुधार लाने की प्रक्रिया के लिए भी काफी अहम माना जाता है।
फरलो क्या होती है?
फरलो का मतलब कैदियों को जेल से मिलने वाली एक छूट होती है। यह व्यक्तिगत, पारिवारिक या सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए दी जाती है। फरलो के लिए कैदी को कारण बताना जरूरी नहीं होता है। इसे कैदियों का अधिकार माना जाता है। जेल की रिपोर्ट की आधार पर सरकार इसे मंजूर या नामंजूर करती है। एक साल में एक कैदी तीन बार फरलो ले सकता है। जेल स्टेट सब्जेक्ट है इसलिए फरलो को लेकर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग कानून हैं।