Monday, May 20, 2024
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आज से जगन्नाथ यात्रा हुई शुरु

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Jagannath Yatra 2023: आज से पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा (Jagannath Yatra 2023) की शुरुआत हो चुकी है। हर साल जगन्नाथ  रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होकर आषाढ़ शुक्ल की दशमी तक चलती है। यह यात्रा  जगन्नाथ मंदिर के मुख्य द्वार (सिंहद्वार) से शुरू होती है और पूरी नगर में  चलती है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं और भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी होते हैं। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पुरी के मंदिर से निकलते हुए गुंडिचा मंदिर जाती है। इस गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों ही आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तक रुकते हैं। इसके वापस तीनों पुरी लौटते हैं।

हर साल क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ यात्रा (Jagannath Yatra 2023) 

हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से आषाढ़ शुक्ल की दशमी तक भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभ्रद और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा पर निकलते हैं। कहते हैं कि र द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से उनकी बहन सुभद्रा ने द्वारका देखने इच्छा को व्यक्त किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए सुभद्रा और बलभद्र जी को रथ पर बैठाकर द्वारका की यात्रा करवाई थी। इसलिए हर साल रथ यात्रा निकाली जाती है।

भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा की अधूरी मूर्ति 

रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ यानि की कृष्ण भगवान और उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्ति रखी जाती है। उनकी मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं और ये आज भी अधूरी हैं। मंदिर में इन्हीं अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि  राजा इंद्रद्युम्न जब पुरी में जगन्नाथ जी का मंदिर बनवा रहे थे। तब उन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का कार्य देव शिल्पी विश्वकर्मा को सौंपा था।

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राजा इंद्रद्युम्न के सामने विश्वकर्मा ने मूर्ति बनाने से पहले ये शर्त रखी कि वे दरवाजा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और जब तक मूर्तियां नहीं बन जातीं तब तक अंदर कोई प्रवेश नहीं करेगा। उन्होंने ये भी कहा कि यदि दरवाजा किसी भी कारण से पहले खुल गया तो वे मूर्ति बनाना छोड़ देंगे।

भगवान विश्वकर्मा ने नाराज होकर छोड़ दिया था मूर्ति का निर्माण 

राजा ने शिल्पी की बात मान ली और दरवाजा बंद करके शिल्पी विश्वकर्मा ने मूर्ति बनाने का काम शुरु कर दिया। राजा हमेशा आवाज की खट-खट से सुनते रहते थे कि मर्ति निर्माण का काम हो रहा है या नहीं। एक दिन कमरे के अंदर से आवाज नहीं आ रही थी। राजा को  लगा कि विश्वकर्मा काम छोड़कर चले गए हैं। इसके बाद राजा ने दरवाजा खोल दिया। राजा के द्वारा किए गए इस काम से  भगवान विश्वकर्मा वहां से अंतर्ध्यान हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गईं। उसी दिन से आज तक मूर्तियां इसी रूप में यहां विराजमान हैं और आज भी इसी रूप में उनकी पूजा होती है।

 

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