DSGMC News, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGMC) ने एक अहम फैसला लेते हुए गुरुद्वारों में फिल्मी धुनों या संगीत पर आधारित कीर्तन करने पर रोक लगा दी है। कमेटी ने निर्णय लिया है कि दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारों में श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार कीर्तन करने वाले जत्थों को ही समय दिया जाएगा।
इसके साथ ही कीर्तन व्यवस्था में भी बदलाव किया गया है। अब कीर्तनी जत्थे की पोशाक को पंथ द्वारा मंजूरी दी जाएगी। इस संबंध में गुरुद्वारा कमेटी ने सभी गुरुद्वारों के मुख्य ग्रंथी को आदेश जारी कर दिया है।
धर्म प्रचार समिति के अध्यक्ष जसप्रीत सिंह करमसर ने कहा कि पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि रागी जत्थे फिल्मी धुनों या संगीत पर आधारित धुनें तैयार कर कीर्तन कर रहे हैं। इसके साथ ही कुछ रागी जत्थे गुरबानी से एक पंक्ति लेकर बीच में ही छोड़ देते हैं और भगवान का जाप करने लगते हैं।
फिर वे दूसरी पंक्ति से कीर्तन शुरू करते हैं जो शिष्टाचार के विरुद्ध है। पहले के समय में रागों के आधार पर कीर्तन किया जाता था। यदि समय रहते इन्हें नहीं रोका गया तो जिस प्रकार सिख इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है, भविष्य में गुरबाणी के साथ भी छेड़छाड़ की जाएगी।
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गुरबाणी के साथ हो रही छेड़छाड़ को तुरंत प्रभाव से रोकना होगा। उन्होंने संगत से यह भी अपील की है कि रागी जत्थों को मर्यादा गुरबानी पर आधारित शबद गाने के लिए कहा जाए। इस फैसले पर कई सिंह ग्रंथियों ने कहा कि सिख परंपरा के मुताबिक कीर्तन शुद्ध और शुद्ध गुरबानी स्वरूप में होना चाहिए। कई लोगों ने कहा कि यह स्वागत योग्य कदम है।
पवित्रता और श्रद्धा से करना चाहिए गुरबाणी का कीर्तन सिंह ग्रंथीजनों ने कहा कि डीएसजीएमसी का यह फैसला सिख धर्म और परंपराओं की गरिमा बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सिख समुदाय इस फैसले को किस तरह से स्वीकार करता है और भविष्य में इसका क्या प्रभाव पड़ता है।