धर्म। सनातन धर्म में शीतला अष्टमी विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इसे बसौड़ा अष्टमी भी कहा जाता है। बता दें यह पर्व एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथि से आरंभ हो जाता है। शीतला अष्टमी का व्रत होली से ठीक आठवें दिन बाद रखा जाता है।
इस दिन मां शीतला की पूजा विधिवत तरीके से करने के साथ-साथ उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इसे बासोड़ा या बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और मां शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को हर एक दुख-दर्द से निजात मिल जाती है और लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। जानें शीतला अष्टमी का तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व…
कब है शीतला अष्टमी 2024?
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि आरंभ- 1 अप्रैल को रात 9 बजकर 9 मिनट से शुरू
अष्टमी तिथि समाप्त- 2 अप्रैल को रात 8 बजकर 8 मिनट पर
शीतला अष्टमी – 2 अप्रैल 2023
शीतला सप्तमी- 1 अप्रैल 2023
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, 2 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 19 मिनट से शाम 6 बजकर 32 मिनट तक
कैसा है मां शीतला का स्वरूप?
मां शीतला के स्वरूप को कल्याणकारी माना जाता है। बता दें कि अपने हाथों में झाड़ू, कलश, सूप और नीम की पत्तियां लिए हुए हैं और वाहन की बात करें,तो गर्दभ में विराजमान है।
मां शीतला को लगाते हैं बासी भोजन का भोग
शास्त्रों के अनुसार, शीतला अष्टमी के दिन माता को बासी भोजन का भोग लगाते हैं, जो एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथि को बनाते हैं और अष्टमी तिथि को गैस या चूल्हा नहीं जलाया जाता है। सप्तमी तिथि को शाम के समय भोग के लिए गुड़-चावल या फिर चावल और गन्ने का रस मिलाकर खीर बनाते हैं और इसके साथ ही मीठी रोटी बनाई जाती है। मां को भोग लगाने के बाद घर के हर एक सदस्य इस भोग का सेवन करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता को बासी भोजन काफी प्रिय है।
चेचक, खसरा आदि रोगों से राहत
शीतला अष्टमी के दिन व्रत रखने के साथ विधिवत रूप से मां शीतला की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां शीतला की पूजा करने से वह हर तरह के रोगों से मुक्ति दिला देती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति शीतला अष्टमी का व्रत रखता है तथा देवी शीतला की विधि-विधान से पूजा करता है और फिर बासी खाने का भोग लगाता है, तो देवी प्रसन्न होती है और भक्त को चेचक, खसरा आदि रोगों से राहत मिल सकती है।
जानिए वैज्ञानिक महत्व
शीतला अष्टमी का धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी माना गया है। इसके अनुसार, यह पर्व ऐसे समय पर मनाया जाता है, जब शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय होता है। ऐसे में यह समय दो ऋतुओं के संधिकाल का समय होता है। इस दौरान खानपान का विशेष ध्यान रखना होता है, वरना स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है। माना जाता है कि इस मौसम में ठंडा खाना खाने से पाचन तंत्र अच्छा बना रहता है। ऐसे में जो लोग शीतला अष्टमी पर ठंडा खाना खाते हैं, वह लोग इस मौसम में होने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं।
कैसे मनाया जाता है यह पर्व
बासोड़ा पर्व की परम्परा के अनुसार, इस दिन घरों में भोजन पकाने के लिए अग्नि का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसलिए बासोड़ा से एक दिन पहले भोजन जैसे मीठे चावल, राबड़ी, पुए, हलवा, रोटी आदि पकवान तैयार कर लिए जाते हैं और अगले दिन सुबह बासी भोजन ही देवी शीतला को चढ़ाया जाता है। इसके बाद इसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
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