Monday, May 20, 2024
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तीर्थराज कपाल मोचन के पवित्र सरोवर में प्रकाश पर्व पर 8 लाख श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

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कपाल मोचन मेले में इस बार पशुओं की प्रदर्शनी भी लगाई गई है। विभिन राज्यों से पशु यहां पर आए हुए है, लेकिन हरियाणवी घोड़ा इस पुरे मेले में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

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यमुनानगर। तीर्थराज कपाल मोचन हरियाणा के यमुनानगर में स्थित है। यहाँ हर साल बड़े ही शानदार तरीके से कपाल मोचन मेले का आयोजन किया जाता है। श्री गुरू नानक देव जी के प्रकाशपर्व पर यमुनानगर स्थित तीर्थराज कपाल मोचन का नज़ारा देखते ही बन रहा था। इस साल आठ लाख से भी अधिक श्रद्धालु रात 12 बजते ही यहां स्थित एतिहासिक एवं पवित्र सरोवरों में उतर गए और सभी ने आस्था की डुबकी लगाई। सरोवरों के किनारों पर दीप जलाकर अरदास भी की।

आपको बता दें यहाँ सिर्फ हरियाणा ही नहीं, पंजाब, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड समेत कई राज्यों से श्रद्धालु इस मेले में पहुँचते है। यह मेला 23 नवंबर से शुरू हुआ था और 27 यानी की आज इस मेले का समापन हो जाएगा। तीर्थ कपाल मोचन के पवित्र सरोवरों में 24 घंटे स्नान व पूजन चल रहा है। मेला स्थल पर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। यमुनानगर व कुरुक्षेत्र समेत कई जिलों की रोडवेज स्पेशल बस सर्विस मेले के लिए 24 घंटे चल रही है। यमुनानगर में रेलवे स्टेशन के बाहर अस्थाई बस अड्डा बनाया गया है।

गौरतलब है कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसे देश के विभिन्न राज्यों से आने वाले लाखों श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ हर साल कार्तिक पूर्णिमा की रात 12 बजते ही इसी तरह निभाते चले आ रहें है। इस अवसर पर लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए स्थानीय प्रशासन द्वारा भी विशेष इंतजाम किए गए थे। कपाल मोचन स्थित प्रमुख गुरूद्वारा साहिब एवं गाय बच्छा घाट मंदिर किसी दुल्हन की तरह सजाए गए थे और लोगो की आस्था देखते ही बन रही थी। विशेष बात यह भी है कि इस तीर्थ में हिंदू, सिख और मुस्लिम तीनों धर्म के लोगों की आस्था है।

बता दें कपाल मोचन तीर्थ पर मिथ्या बनी हुई है कि यहां जब भी कोई नेता सत्ता में रहते हुए सरोवर पर स्नान करने आया तो उसके बाद वो कभी सत्ता में नहीं आया। महा पंजाब के वक्त 1956 में सरदार प्रताप सिंह कैरों मुख्यमंत्री रहते यहां मेले में आए थे, जिसके बाद वो कभी सत्ता में नहीं आए। इसके बाद 1972 में हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल मेले में आए, जिसके बाद वो भी सत्ता में नहीं आए। इस मिथ्या को तोड़ने के लिए मनोहर लाल पिछले साल मेले में आए थे।

इस बार यह मेला इसलिए भी खास बना हुआ है कि कपाल मोचन मेले में इस बार पशुओं की प्रदर्शनी भी लगाई गई है। विभिन राज्यों से पशु यहां पर आए हुए है, लेकिन हरियाणवी घोड़ा इस पुरे मेले में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। वैसे तो बड़े ही शानदार अंदाज में एक से बढ़कर एक जानवर इस मेले में आए हैं। लेकिन लोगों की नजर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले से आए हुए एक घोड़े के ऊपर जाकर टिक गई है जिसका नाम हैदर है और सिर्फ 34 महीने का है।

घोड़े के मालिक उदय सिंह विर्क ने बताया कि राजस्थान के पुष्कर में आयोजित एशिया हॉर्स शो में इस घोड़े ने पहला स्थान हासिल किया था, उसके बाद भिवानी में आयोजित हॉर्स शो में इस घोड़े ने हरियाणा चैम्पियन का खिताब भी हासिल किया, हाल ही में डीएफए में यह घोड़ा आल इंडिया चैम्पियन बना है। उन्होंने कहा कि वैसे तो यह घोड़ा अनमोल है, लेकिन पुष्कर में आयोजित प्रतियोगिता में इसकी कीमत 60 लाख रूपये लगाई गई थी। उन्होंने कहा कि यहाँ मेले में लोग इस घोड़े को देखने के लिए आ रहे है।

उन्होंने कहा कि उनके पास 8 घोड़े है, लेकिन इस मेले में सिर्फ दो घोड़ों को ही लेकर आए है। उदय सिंह विर्क ने बताया कि इस घोड़े का नाम हैदर है, यह मारवाड़ी नस्ल का है। इसकी कीमत मर्सिडीज कार से भी ज़्यादा है। यह घोड़ा पिछले दो साल से उनके साथ है और इस पर काफी खर्च होता है। इसकी देखभाल के लिए हमेशा चार लोग तैनात रहते हैं। अगर इस घोड़े को किसी मेले में ले जाते है तो उस मेले में यह घोड़ा आकर्षण का केंद्र बन जाता है क्योंकि इसकी कद काठी और बनावट बहुत ही शानदार है।

देशभर से पहुंचे श्रद्धालु तब श्रद्धा से सराबोर होकर पवित्र सरोवरों में डुबकी लगाकर अपने जीवन में सुख-शांति व उन्नति की कामना की। हिंदू धर्म के साथ-साथ यहां सिख लोगों के भी काफी आस्था है, क्योंकि यहां सिक्खों के गुरु गोविंद सिंह 52 दिन ठहरे थे और चंडी महायज्ञ कर भगानी साहब का युद्ध जीता था। जिसके चलते यहां गुरुद्वारे में पूर्णिमा के दिन प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। श्रद्धालुओं ने बताया कि वह सालों से यहां पर आ रहे हैं और करोड़ों में स्नान करते हैं और उनकी मान्यताएं पूरी होती है। बड़ी बात ये है कि जहां इस मेले में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं तो कहीं भी दुर्घटना सामने नहीं आती।

पंडित सुभाष शर्मा ने बताया पुराणों के अनुसार कपाल मोचन तीर्थ तीनों लोकों के पाप से मुक्ति दिलाने वाला स्थल है। इसके पवित्र सरोवरों में स्नान करने से ब्रहम हत्या जैसे महापाप का निवारण होता है। हर पवित्र सरोवर में स्नान करने का अपना महत्व है। श्रीकृष्ण व पांडवों ने यहां स्नान कर पितृ ऋण से मुक्ति पाई थी। ऋणमोचन सरोवर में स्नान करने से ऋणों से मुक्ति मिलती है। भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर यहां स्नान ध्यान कर मोक्ष की कामना की। श्रीकृष्ण व पांडवों ने द्वापर में कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद यहां अस्त्र-शस्त्र धोए। उसके बाद पितृ ऋण से मुक्ति पाई।

कलियुग में जब पूर्णाहुति पर श्रेष्ठता को लेकर देवताओं में विवाद हो गया, तब भगवान शिव को ब्रह्म हत्या की कपाली लग गई। उन्हें मुक्ति पवित्र कपाल मोचन सरोवर में डुबकी लगाने पर ही मिली। सूरजकुंड पर स्नान कर कदंब के पेड़ की पूजा की जाती है। श्रद्धालु सबसे पहले ऋणमोचन, फिर कपाल मोचन व अंत में सूरजकुंड में स्नान करते हैं। इस कुंड में स्नान करने से आत्मिक शांति मिलती है। क्लेशों से मुक्ति और ज्ञान में वृद्धि होती है।

मुगलकाल के दौरान अकबर साम्राज्य के परगना सढौरा के काजी फिमूदीन भी यहां आए और उन्हें संतान सुख की प्राप्ती हुई। उन्हीं के वंशज के रूप मे सढौरा में आज भी काजी महौल्ला आबाद है। इसी कारण हिन्दू व सिखों के अलावा मुस्लमान भी कपाल मोचन तीर्थ एवं मेला के प्रति गहरी श्रद्धा रखते है। श्रद्धालु कपाल मोचन स्थित एतिहासिक एवं पवित्र सरोवर, ब्रह्मसरोवर, ऋण मोचन एवं सूर्यकुण्ड में आस्था की डुबकी लगाते है और सदियों से चले आ रहे पारंपरिक तौर-तरीकों से दीप दान भी करते है। कपाल मोचन तीर्थ स्वयं में प्राचीन इतिहास समेटे हुए है।

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर कपाल मोचन तीर्थ की मनभावन छटा

 

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