चंडीगढ़। हरियाणा में छोटी सी उम्र में ही तनाव का शिकार होकर कई होनहार अपनी जान दे रहे हैं। हाल ही में रेवाड़ी जिले के गांव गोठड़ा-पाली स्थित सैनिक स्कूल की दूसरी मंजिल पर बालकनी से छलांग लगाकर 11वीं कक्षा के स्टूडेंट जतिन खुदकुशी कर ली। मामले में पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला है। सुसाइड नोट में जतिन ने मौत से पहले खुद के दर्द को बयां किया है। कैथल में 9वीं क्लास के एक स्टूडेंट ने अपनी जान देने की कोशिश की तो यह सवाल फिर खड़ा हो गया कि आखिर क्यों नाबालिगों में सुसाइड के इतने ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। वहीँ कोचिंग हब कोटा आजकल विद्यार्थियों के आत्महत्या की वजह से काफी चर्चा में है।
आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी
अगर हरियाणा की बात करें तो यहां भी विद्यार्थी अपनी खूबसूरत जिंदगी का बुरा अंत करने में नहीं हिचकते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक हर साल आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। औसतन हर दूसरे दिन एक छात्र अपनी जीवनलीला को समाप्त कर रहा है। कोशिश तो इससे ज्यादा लोग करते हैं। इनमें से कुछ को समय रहते बचा लिया जाता है तो कुछ के लिए मौका ही नहीं मिलता। एक्सपर्ट्स के मुुताबिक, पढ़ाई का प्रेशर, क्लास में टीचर्स के तिरस्कार और पैरेंट्स की उम्मीद पर खरे न उतरने का डर इस कदर हावी हो रहा है कि वे कम उम्र में ही मौत को गले लगाने जैसा खौफनाक फैसला कर रहे हैं। एनसीआरबी के आंकड़े भी बताते हैं कि सुसाइड करने के मामले में यंगस्टर्स व स्टूडेंट्स ज्यादा हैं।
स्किल को बढ़ाने में अभिभावकों दें साथ
विशेषज्ञ मानते हैं कि हर आत्महत्या को रोका जा सकता है। आत्महत्या करने से पहले पीड़ित में लक्षण दिखने लगते हैं लेकिन संवाद की कमी से न तो टीचर इसे पहचान पाते हैं और न ही अभिभावक। सबसे जरूरी है संवाद करना और विद्यार्थियों का आत्मविश्वास बढ़ाना। मनोविशेषज्ञ कहते हैं कि हर विद्यार्थी संपूर्ण नहीं होता है। सबमें कुछ न कुछ कमी रहती है। इसमें वह बेहतर उस स्किल को बढ़ाने में अभिभावकों को उसका साथ देना चाहिए। पहले भी जिंदगी में विफल होने पर लोग आत्महत्या करते थे लेकिन आज के समय में छोटी छोटी बात पर गलत कदम उठा लेते हैं। यूं कहें कि मां ने डांट दिया तो बेटे ने आत्महत्या कर ली। गेम में टास्क पूरा करने के लिए छत से कूद गए। अब लोग बिना वजह के आत्महत्या करने लगे हैं। यह चलन काफी डराने वाला है। खासकर युवाओं में आत्महत्या की सोच तेजी से पैदा हो रही है, जो सबसे ज्यादा घातक है।
हरियाणा में नहीं है कोई हेल्पलाइन नंबर
हरियाणा में फिलहाल ऐसा कोई हेल्पलाइन नंबर नहीं है, जिसमें आत्महत्या को रोकने संबंधी मदद मांगी जा सके। आमतौर पर लोग पुलिस हेल्पलाइन पर कॉल करते हैं। वहीं, हरियाणा में ऐसी कोई सामाजिक संस्था भी नहीं है, जो इस दिशा में काम कर रही हो। हालांकि अन्य राज्यों में हेल्पलाइन नंबर है, जिसमें व्यक्ति बातचीत कर सकता है। वहीँ विशेषज्ञ मानते हैं कि विद्यार्थियों में आत्महत्या की बड़ी वजह प्रतिस्पर्धा है। घरवालों का दबाव और उनकी उम्मीदें भी छात्रों को मानसिक रूप से कमजोर बनाता है। अक्सर अभिभावक अपने बच्चों से सिर्फ पढ़ाई को लेकर ही बात करते हैं। बाकी बातों से उनका लेनादेना नहीं होता। वहीँ प्रेम में नाकामी, उच्च शिक्षा के मामले में आर्थिक समस्या, बेहतर रिजल्ट के बावजूद प्लेसमेंट नहीं मिलना भी एक वजह हो सकती है।
18 से 30 वर्ष के बीच उम्र वाले उठा रहे गलत कदम
चंडीगढ़ के सेक्टर-32 अस्पताल के सीनियर डॉक्टर साइकेट्रिस्ट एमबीबीएस डॉ निधि का कहना है कि सोशल मीडिया और स्क्रीन के अधिक इस्तेमाल, नशा, अकेलापन, तलाक, शादी न होना, संतान न होना और ब्रेकअप जैसी समस्याएं युवाओं में तनाव बढ़ा है, जिसकी वजह से वह इस तरह के कदम उठा रहे हैं। अधिकतर आत्महत्या करने वालों की उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच है। सीनियर डॉक्टर के मुताबिक, अकेलापन, सामाजिक अलगाव, आत्महत्या की धमकी देना, मूड में अचानक बदलाव, भविष्य के लिए यह ऐसे संकेत होते हैं. ऐसे में लोगों पर नजर रखनी चाहिए।
आत्महत्या करने से पहले के लक्षण
डॉ निधि का कहना है कि मानसिक अवसाद से गुजर रहे युवाओं को बचाया जा सकता है। क्योंकि जब युवाओं में ये ख्याल आते हैं तो उनके कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जैसे अचानक से परिजनों से बातचीत करना कम कर दे या अकेले, चुपचाप और गुमसुम रहे और किसी बात को लेकर अधिक सोचते रहे। सोशल मीडिया पर निराशाजनक बातें लिखे या फिर इंटरनेट पर सुसाइड संबंधी खबरों को पढ़े और तरीके खोजे तो ऐसे में परिजनों को उनके सोशल मीडिया पर ख़ास नजर रखनी चाहिए।
परिजनों को चाहिए उनसे बात करें, अगर वो गुस्सा भी करें तो गुस्सा न करें और न ही अधिक प्रेम दिखाए। दखलअंदाजी व बात-बात पर कमेंट न करें और न ही कोई व्यंग्य कसें। अगर बच्चे दूर रहते हैं तो समय-समय पर उसके पास जाते रहें। बच्चों से खुलकर बात करें। पढ़ाई के अलावा दूसरे बातों में उसकी राय लें। अगर अवसाद में लगे तो तुरंत मनोचिकित्सक व काउंसलर की सेवा जरूर लें। अधिकतर सकारात्मक बात करें और हौसला बढ़ाएं। किसी भी तरह का दबाव न बनाएं।