गुस्ताखी माफ़ हरियाणा -पवन कुमार बंसल। पत्रकारिता के भीष्म पितामह प्रभाष जोशी की चौदहवी जयंती पर नमन।
आज उन जैसे सम्पादको और खोजी पत्रकारिता की जरूरत है। आज नेता और अफसर मिलकर देश और मेरे प्रदेश हरियाणा के साधनो को जिस बेशर्मी से लूट रहे है उसे देख शायद गजनी को भी शर्म आये। नेताओ और अफसरों के नापाक गठजोड़ को नंगा करने के लिए मीडिया का कथित चौथा खम्भा तो आज लड़खड़ा कर गिर गया है। खोजी खबरे तो दीपक लेकर भी ढूंढने पर नहीं मिलती।
आज से चौदह वर्ष पूर्व श्री प्रभाष जोशी जून की तपती दोपहर में नॉएडा से रोहतक मेरी किताब ‘खोजी पत्रकारिता क्यों और कैसे’ का विमोचन करने रोहतक आये थे। लोकसभा चुनाव हो चुके थे। तब जोशी जी ने कहा की अखबारों में चुनाव बारे जो प्रकाशित हुआ वो झूठ और पेड न्यूज़ है। उन्होंने कहा की अखबारों से अख़बार का लाइसेंस छीन उन्हें प्रिंटिंग प्रेस का लाइसेंस दे देना चाहिए।
अपने रिपोर्टर का जोशी जी बचाव करते थे। मेरी दोनों किताबों ‘हरियाणा के लालों के सबरंग किस्से ‘ और खोजी पत्रकारिता क्यों और कैसे “का न केवल उन्होंने प्राक्थन लिखा बल्कि विमोचन भी किया। मुझे वो प्यार से पंडित पवन कुमार कहते थे। तीसरी किताब ‘गुस्ताखी माफ़ हरियाणा ‘के दिल्ली में विमोचन के अवसर पर मेने मन्नवर राणा की पंक्तियों में उन्हें ऐसे याद किया।
“जब कभी धूप की शिद्धत ने सताया मुझको ,
याद आया बहुत एक पेड़ का साया मुझको ,
अब भी रोशन है तेरी याद से घर के कमरे,
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको।
दुमछल्ला।
जिस ‘जनसत्ता ‘ अख़बार को जोशी जी ने अपने खून से सींच कर बुलंदियों पर पहुंचाया आज वो दम तोड़ गया है