Sunday, May 5, 2024
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हाईकोर्ट ने मां का बयान किया नजरअंदाज, किशोरी की बात मान दुष्कर्मी की सजा रखी बरकरार

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हाईकोर्ट ने इसे नकारते हुए कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप सही है या नहीं यह सब पीड़ित की बेदाग गवाही पर निर्भर है, न कि उसके विपरीत गवाही पर इसलिए, जब सभी कारणों से इस न्यायालय ने गवाही को अत्यधिक विश्वसनीयता प्रदान की है

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सोनीपत। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने 13 साल की किशोरी से दुष्कर्म के दोषी की सजा के खिलाफ अपील को पीड़िता के बयान को आधार बनाते हुए खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने पीड़िता की मां के बयान को नजरअंदाज करते हुए पीड़िता के बयान में विश्वास दिखाया और याची की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। याचिका दाखिल करते हुए दोषी ने सोनीपत जिला अदालत द्वारा दोषी करार देने और उम्रकैद की सजा के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

दोषी ने पिछले साल सोनीपत कोर्ट के दोषी करार दिए जाने व आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ अपील दायर करते हुए कहा था कि पीड़िता की गवाही की विश्वसनीयता खत्म हो गई क्योंकि उसकी मां अपने पहले दिए गए बयान से पलट गई थी। हाईकोर्ट ने इसे नकारते हुए कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप सही है या नहीं यह सब पीड़ित की बेदाग गवाही पर निर्भर है, न कि उसके विपरीत गवाही पर इसलिए, जब सभी कारणों से इस न्यायालय ने गवाही को अत्यधिक विश्वसनीयता प्रदान की है, जैसा कि पीड़िता द्वारा दी गई है।

हाई कोर्ट ने कहा इसलिए, कोई भी दोषमुक्ति संबंधी गवाही, जैसा कि पीड़िता की मां द्वारा दी गई गवाही पूरी तरह से अप्रासंगिक हो जाती है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 13 वर्षीय लड़की ने बीमार पड़ने और उल्टी शुरू करने के बाद अपने माता-पिता को घटना के बारे में सूचित किया था। जांच की गई और चिकित्सा साक्ष्य की जांच के बाद आरोप पत्र दायर किया गया। अपीलकर्ता के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाया गया था।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस कुलदीप तिवारी की खंडपीठ ने सजा के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए कहा कि हम पीड़िता की गवाही पर विश्वास करते हैं। याची के खिलाफ लगाए गए आरोप सही हैं या नहीं यह सब पीड़िता की बेदाग गवाही पर निर्भर है, न कि उसके विपरीत दी गई मां की गवाही पर। जब पीड़िता ने खुद गवाही देकर पूरी घटना का विवरण दे दिया है तो उसकी मां की उसके खिलाफ दी गई गवाही महत्वहीन हो जाती है।

एफआईआर के अनुसार 13 वर्षीय किशोरी ने बीमार पड़ने और उल्टी शुरू करने के बाद अपने माता-पिता को घटना के बारे में सूचित किया था। जांच की गई और सामने आया कि पीड़िता सात सप्ताह की गर्भवती थी। चिकित्सा साक्ष्य की जांच के बाद आरोप पत्र दायर किया गया। याची पर पॉक्सो एक्ट में एफआईआर दर्ज की गई थी। याची ने दलील दी कि उसे फंसाया जा रहा है क्योंकि पीड़िता और उसकी मां ने विरोधाभासी बयान दिए थे। ऐसे में पीड़िता की गवाही की विश्वसनीयता खत्म हो गई।

हाईकोर्ट ने डॉक्टर की गवाही पर भी गौर किया, जिसने पीड़िता की जांच की थी और कहा था कि उसे सात सप्ताह के जीवित भ्रूण के साथ भर्ती कराया गया था। इसका विरोध करते हुए याची ने कहा था कि डीएनए रिपोर्ट अनिर्णायक थी और ऐसे में उसे दोषमुक्त करार दिया जाए। हाईकोर्ट ने याची की सभी दलीलों को रद्द करते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया।

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