रोहतक। रोहतक में सीवर एवं सेप्टिक टैंक की जोखिमपूर्ण सफाई करने के दौरान तीन साल में 10 लोगों की मौत हो चुकी है। दो युवकों की मौत दो दिन पहले अस्थल बोहर हाइवे पर सीवर सफाई के दौरान हुई है। लेकिन ठेकेदार ने 36 घंटे तक उनकी मौत को छिपाये रखा क्योंकि दोनों मजदूरों को भी बिना सुरक्षा के सीवर में उतारा गया था। अभी एक और मजदूर पीजीआई में जिंदगी से संघर्ष कर रहा है और लेकिन उसकी जान बच गई है। मीडिया को देखकर ठेकेदार भागता नजर आया और कोई जानकारी नहीं दी। पुलिस भी इस मामले पर नजर बचाते हुए कोई जानकारी नहीं दे रही। ठेकेदार और मृतकों के परिवार में समझौता हो गया इस वजह से उन्होंने कोई मामला दर्ज नहीं करवाया। मजदूर भी इस विषय पर जानकारी नहीं दे रहे थे।
गौरतलब है कि जून 2019 में मीट मार्किट के पास बगैर सुरक्षा उपकरणों के सीवर के डिस्पोजल पंप की सफाई करने उतरे जन स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों समेत चार की मौत हो गई थी। इसके बाद सितम्बर 2022 में आईएमटी स्थित कम्पनी के सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दो मजदूरों की मौत हो गई थी। गैस इतनी अधिक थी कि कई घंटों तक उनके शवों को बाहर नहीं निकाला जा सका था और कम्पनी ने बिना सेफ्टी के उन्हें टैंक में उतार दिया था। इसके बाद जुलाई 2023 में रोहतक पीजीआई के सफाई कर्मचारियों को जबरन डीघल में सफाई के लिए भेजा गया था जहाँ उन्हें बिना सेफ्टी के टैंक में उतार दिया। जहरीली गैस से बेसुध होकर गिर पड़े। इस पर रोहतक पीजीआई में सफाई कर्मियों काफी बवाल काटा था और उनका कहना था कि दोनों की ड्यूटी भी नहीं थी इसके बावजूद उन्हें ठेकेदार जबरन ले गया और टैंक में उतार दिया जिससे उनकी जान पर बन आई। वहीँ 21 नवंबर 2023 की रात को बाबा मस्तनाथ यूनिवर्सिटी के टैंक में उतरे दो मजदूरों की मौत हो गई। उन्हें भी कोई सेफ्टी टैंक नहीं दिया गया था।
आपको बता दें कि हर वर्ष देशभर के सीवरों में औसतन एक हजार लोग दम घुटने से मरते हैं। जो दम घुटने से बच जाते हैं, उनका जीवन सीवर की विषैली गंदगी के कारण नरक से भी बदतर हो जाता है। देश में दो लाख से अधिक लोग जाम सीवरों को खोलने, मेनहोल में जमा गाद, पत्थर को हटाने के काम में लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि यदि सीवर की सफाई के दौरान कोई श्रमिक मारा जाता है तो उसके परिवार को सरकारी अधिकारियों को 30 लाख रुपये मुआवजा देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने यह भी कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी विकलांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जायेगा। यदि सफाई करते हुए कोई कर्मचारी अन्य किसी विकलांगता से ग्रस्त होता है तो उसे 10 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि सरकारें सुनिश्चित करें कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह समाप्त हो। यह इस तरह का कोई पहला आदेश नहीं है। परंतु कम खर्च में श्रम का लोभ, पेट भरने की मजबूरी और आम मजदूरों के सरकारी कानूनों से अनभिज्ञ होने के कारण यह अमानवीय कृत्य जारी है।
हरियाणा में 97 लोगों के लिए सीवर मौतघर बन चुका है जिसमे तीन साल में रोहतक में सफाई के दौरान 8 मजदूरों ने अपनी जान गंवाई है। ऐसी हर मौत का कारण सीवर की जहरीली गैस बताया जाता है। हर बार कहा जाता है कि यह लापरवाही का मामला है। पुलिस ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है। लोग भी अपने घर के सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए अनियोजित क्षेत्र से मजदूरों को बुलाते हैं।
यदि उनके साथ कोई दुर्घटना होती है, तो उनके आश्रितों को न तो कोई मुआवजा मिलता है, न ही कोताही बरतने वालों को समझाइश। शायद पुलिस को भी नहीं मालूम कि इस तरह सीवर सफाई का ठेका देना हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत है। समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि नरक कुंड की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है।
कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सीवर की सफाई करने वाली एजेंसी के पास सीवर लाइन का मानचित्र, उसकी गहराई से संबंधित आंकड़े होने चाहिए. सीवर सफाई का दैनिक रिकॉर्ड, काम में लगे लोगों की नियमित स्वास्थ्य की जांच, आवश्यक सुरक्षा उपकरण मुहैया करवाना, काम में लगे कर्मचारियों की नियमित ट्रेनिंग, सीवर में गिरने वाले कचरे की हर दिन जांच जैसी आदर्श स्थिति कागजों से ऊपर कभी आ ही नहीं पायी। सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश है तो ताकतवर, परंतु समस्या यह है कि अधिकांश मामलों में मजदूरों को काम पर लगाने का कोई रिकॉर्ड ही नहीं होता। यह सिद्ध करना मुश्किल होता है कि अमुक व्यक्ति को अमुक ने इस काम के लिए बुलाया था या काम सौंपा था।
कई-कई महीनों से बंद पड़े इन गहरे नरक कुंडों में कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, मीथेन जैसी दमघोटू गैसें होती हैं। यह जानते हुए कि भीतर जानलेवा गैसें और रसायन हैं, एक इंसान दूसरे इंसान को बगैर किसी बचाव या सुरक्षा साधनों के भीतर ढकेल देता है, जो शर्मनाक है। सीवर की सफाई करने वाला 10-12 वर्ष से अधिक काम नहीं कर पाता है, क्योंकि उसका शरीर काम करने लायक रह ही नहीं जाता है।
देश में कानून है कि सीवर सफाई करने वालों को गैस टेस्टर, गंदी हवा को बाहर फेंकने के लिए ब्लोअर, टॉर्च, दास्ताने, चश्मा और कान ढकने का कैप, हेलमेट मुहैया करवाना आवश्यक है। हाईकोर्ट का निर्देश था कि सीवर सफाई का काम ठेकेदारों के माध्यम से नहीं करवाना चाहिए। सफाई का काम करने के बाद उन्हें पीने का स्वच्छ पानी, नहाने के लिए साबुन व पानी तथा स्थान उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी कार्यकारी एजेंसी की है। पर इन्हें मानता कौन है।