Tuesday, April 30, 2024
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पद्म श्री पहुंचा कन्या गुरुकुल तक, गणतंत्र दिवस पर जिले के लिए गौरव के पल

रोहतक गुरुकुल की आचार्या डॉ. सुकामा को मिला पद्मश्री, गुरुकुल में बालिकाओं को दे रही निशुल्क संस्कारवान शिक्षा

रोहतक। आज गणतंत्र दिवस रोहतक जिले के लिए ख़ास है क्योंकि एक आचार्या ने जिले को गौरव के पल दिए हैं। जी हां भारत सरकार की ओर से कन्या गुरुकुल रुड़की गांव की आचार्य डॉ सुकामा देवी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। महिला सशक्तीकरण एवं शिक्षा में उनके अद्वितीय योगदान के लिए यह सम्मान प्रदान किया गया है। अपना जीवन आर्य समाज की शिक्षा को फैलाने के लिए समर्पित करने वाली प्राचार्य की सराहना उपायुक्त यशपाल ने भी की है। साथ ही इसे जिले का मान बढ़ाने वाला सम्मान बताया है।

रोहतक के कन्या गुरुकुल रुड़की की आचार्या डॉ. सुकामा देवी ने महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा में अपना अहम योगदान दिया और पिछले 40 सालों से युवा पीढ़ी में संस्कार देने के लिए काम कर रही हैं। जिसकी बदौलत उन्हें इस सम्मान से नवाजा गया है। डॉ. सुकामा आचार्या गुरुकुल में कन्याओं को संस्कारवान शिक्षा देने के लिए काम कर रही हैं। हालांकि इससे पहले वे दूसरे गुरुकुल में रहकर भी अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। उनका मानना है कि आज केवल शिक्षा से काम नहीं चलेगा। उसके साथ अध्यात्म व संस्कार होना बहुत जरूरी है।

डॉ. सुकामा आचार्या ने कहा कि जब तक वैद की संस्कृति हैं और पांच महायज घरों में नहीं आएंगे तब तक परिवार का वातावरण भी कभी अच्छा नहीं बना पाएगा। जब हम बड़ों के चरणों में बैठकर समय व सामर्थ्य नहीं हैं। जब माता-पिता अपने बड़ों की सेवा करेंगे तो उनके बच्चे भी अपने माता-पिता की सेवा करेंगे। तो उनके जीवन में परिवर्तन आएगा। उन्होंने गुरुकुल को लेकर कहा कि सत्य कभी मरता नहीं। सत्य पर कुछ समय के लिए आवरण तो आ जाता है, लेकिन मरता नहीं। गुरुकुल संस्कृति आज भी नष्ट नहीं हैं। काफी गुरुकुल ऐसे हैं, जो आचार्यों के निर्देशन में चलते हैं और पुराने गुरुकुलों की पद्धति पर ही चलते हैं। गुरुकुल में बच्चा सभी दुष्प्रभावो से दूर रहते हैं।

उन्होंने बताया कि वे 8 वर्ष की उम्र में गुरुकुल में पढ़ने के लिए चली गई थी। दिल्ली के गुरुकुल में शिक्षा व दिक्षा ली। पिछले 40 साल से वे गुरुकुल पद्धति से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि वे अपने आचार्यों को देखकर आगे बढ़ी और उनकी शिष्या भी अब उनसे प्रेरणा लेकर इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। डॉ. सुकामा ने युवा पीढ़ी को संदेश दिया कि हर किसी में शुभ-अशुभ का मिश्रण होता है। युवा में वह शक्ति होती है कि उसे अशुभ का पता लग जाए तो वह सुधर सकता है। युवा में वह ताकत होती है। जब बाद में युवा को पता लगता है तो तब तक उसका समय निकल चुका होता है। इसलिए युवा अपने माता-पिता व समाज के आदर्श व्यक्तियों को अनुकरण करें।

आपको बता दें डॉ. सुकामा ने शास्त्री से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई की है। श्रीमद दयानंदार्थ विद्यापीठ झज्जर से वर्ष 1978 में शास्त्री, 1980 में व्याकरणाचार्य, 1982 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से संस्कृत में स्नातकोत्तर, 1984 में श्रीमद दयानंदार्थ विद्यापीठ, झज्जर से वोदाचार्य, 1987 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से वैदिक इंद्र देवता महर्षि दयानंद के वेदभाष्य के परिप्रेक्ष्य में पीएचडी की। उन्होंने प्राचीन गुरुकुल परंपरा में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद ब्रह्मचर्य दीक्षा ली और गुरुकुल पद्धति से कन्याओं को शिक्षित और संस्कारवार बना रही हैं। भारतीय संस्कृति के प्रचार, गुरुकुल पद्धति की प्राचीन परंपरा के प्रसार, नारी उत्थान व यज्ञीय जीवन के आदर्श को निर्वहन करने का पवित्र संकल्प धारण किया है।

वर्ष 1988 में डॉ. सुकामा ने उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद में आचार्य डॉ. सुमेधा के साथ श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय चोटीपुरा की स्थापना की। वर्ष 2017 (30 वर्ष) तक इसकी संचालन किया। वर्ष 2018 में रोहतक के रुड़की में कन्या गुरुकुल का शुभारंभ किया। इन्हें कई सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं। विश्ववारा कन्या गुरुकुल रुड़की की प्राचार्य डॉ. सुकामा का जन्म झज्जर के गांव आकपुर में एक अक्तूबर 1961 को हुआ था। इनकी माता का नाम वेदकौर और पिता का नाम राजेंद्र देव सिंह है।

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