पराली से अक्टूबर-नवम्बर में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण की खबर सुर्खियों में रहती है। इसके उलट यूपी सरकार के प्रयास से पराली अब ऊर्जा और उर्वरक का सोर्स बनकर “आम के आम और गुठलियों के भी दाम” की कहावत को चरितार्थ कर रही है।
फसल काटने के बाद किसानों और पर्यावरण के लिए समस्या मानी जाती रही पराली अब यूपी में वेस्ट से वेल्थ बनकर किसानों की आमदनी, ऊर्जा और बेहतरीन कंपोस्ट खाद के रूप में आमदनी और उत्पादन बढ़ाने का जरिया बनने लगी। यह संभव हो रहा है सीबीजी (कम्प्रेस्ड बायो गैस) प्लांट से। सीबीजी प्लांट के लिए पराली की आपूर्ति कर किसान अन्नदाता के साथ ऊर्जादाता भी बन रहे हैं।
सीबीजी उत्पादन में यूपी देश में नंबर वन
सीबीजी प्लांट में पराली से ईंधन तैयार हो रहा है और ईंधन बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में किसानों से उनकी पराली खरीदी जा रही है। पिछले साल तक उत्तर प्रदेश में दस सीबीजी प्लांट क्रियाशील थे। वर्तमान में सीबीजी के उत्पादन में यूपी देश में नंबर वन है।
सीबीजी की 24 इकाइयां क्रियाशील, 93 इकाइयां निर्माणाधीन
सीबीजी की 24 इकाइयों में उत्पादन हो रहा है। 93 इकाइयां निर्माणाधीन हैं। आने वाले समय में प्रदेश में इनकी संख्या बढ़कर सौ हो जाएगी। मार्च 2024 में केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी इसकी घोषणा भी कर चुके हैं।
मूल समस्या की वजह
उल्लेखनीय है कि यंत्रीकरण के बढ़ते चलन और श्रमिकों की अनुपलब्धता और श्रम के मंहगा होने की वजह से अब फसलों की कटाई कंबाइन से ही होती है। खरीफ और रबी की प्रमुख फसल धान और गेहूं की कटाई के बाद अगली फसल की तैयारी के लिए इन फसलों के अवशेष जलाने की प्रथा रही है। इसके कारण खासकर धान की कटाई के बाद अक्टूबर-नवम्बर में रबी की मुख्य फसल गेहूं की समय से बोआई के लिए पराली जलाने से मौसम में नमी के कारण पर्यावरण की समस्या कुछ इलाकों में गंभीर हो जाती है।
जैव ऊर्जा नीति के बाद सीबीजी, बायोकोल और बायोडीजल के उत्पादन में बढ़ी निवेशकों की रुचि
उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा नीति 2022 के अनुसार कृषि अपशिष्ट आधारित बायो सीएनजी, सीबीजी इकाइयों को कई तरह के प्रोत्साहन के प्रावधान किए गए हैं। सरकार की मंशा हर जिले में सीबीजी प्लांट लगाने की है। इसी कड़ी में पिछले साल 8 मार्च को गोरखपुर के धुरियापार में इंडियन ऑयल के सीबीजी प्लांट का शुभारंभ हो चुका है। इसके उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उपस्थित रहे केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी मौजूद थी।165 करोड़ रुपये की लागत से बना गोरखपुर का यह सीबीजी प्लांट पर्यावरण की रक्षा, किसानों की आमदनी बढ़ाने और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा प्रयास साबित हो रहा है। इस प्लांट में रोजाना 200 मीट्रिक टन पराली यानी कृषि अवशेष (धान का भूसा), 20 मीट्रिक टन प्रेसमड और 10 मीट्रिक टन मवेशियो के गोबर के उपयोग की क्षमता वाला है। बायोगैस प्लांट में प्रतिदिन लगभग 20 मीट्रिक टन बायोगैस और 125 मीट्रिक टन जैविक खाद का उत्पादन होगा। जैविक खाद से कृषि की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलेगी इस तरह के प्लांट का सीधा मतलब यह हुआ कि ऊर्जा क्षेत्र में भी अन्नदाता किसानों की बड़ी भूमिका होगी। और, इस ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र से जुड़कर वह अतिरिक्त आय भी अर्जित करेंगे। उधर पराली जब जलाई नहीं जाएगी तो पर्यावरण संरक्षण आप ही होने लगेगा।
अगले पांच साल में बायोकोल/बायोडीजल का उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य
उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा नीति (2022) के बाद इस क्षेत्र में निवेशकों ने खासी रुचि दिखाई है। इसके मद्देनजर योगी सरकार को उम्मीद है कि कि अगले पांच साल में उत्तर प्रदेश में बयोकोल/बायोडीजल का उत्पादन भी मौजूदा स्तर से दो गुना हो जाएगा। इस बाबत आई 26 परियोजनाओं में से 21 को सरकार की सैद्धांतिक मंजूरी मिल चुकी है। सरकार का प्रयास है कि अगले साल 2025 तक 20 परियोजनाएं संचलन की स्थिति में आ जाएं।