पटना/ नई दल्लीः विलुप्त हुई हाथ की चक्की चलाती बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर अभी बहुत वायरल हो रहा है। नितीश उनके पति लालू प्रसाद एवं बेटे तेजस्वी की राह का कांटा रहे हैं इसलिए अगर राबड़ी देवी का बस चले तो वह नितीश कुमार को ही इस चक्की में डाल कर पीस दे। वीडियो को चुनावी चक्की के रूपक के तौर पर देखें तो बिहार में अभी यह सवाल मौजूं है कि इस बार कौन पिसेगा। माना जा रहा है कि अगर राजद सुप्रीमो तेजस्वी यादव 4 जून को ‘चाचा’ के ‘बाप’ साबित हुए तो फिर मुख्यमंत्री नितीश कुमार एवं उनकी पार्टी जद यू के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा होना तय है।
इस बार, भाजपा एवं राजद, दो पाटों के बीच बुरे फसे तो जरूर दिख रहे हैं नितीश कुमार। बधस्थल से छलांग की तरह अप्रत्याशित रूप से पाला बदल कर नितीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जब मोदी कैंप में पलटी मारी तो बिहार की सत्ता से बेदखल हुए पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि 24 चुनाव के बाद नितीश के जदयू का खात्मा तय है। इसे भले ही हम तेजस्वी की ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ के रूप में खारिज करें लेकिन कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि बहुत संभव है कि नितीश इस बार के चुनाव के बाद बिहार की राजनीति के लिए अपरिहार्य न रह जाएं और सदा के लिए अप्रासंगिक हो जाएं। सुशासन बाबू का तमगा पाए नितीश कुमार का राजनीति में ‘शेल्फ लाइफ (जीवनावधि) निश्चित रूप से अब खात्मे की ओर अग्रसर दिख रहा है।
इस बार नीतीश के पलटी मारने का एक हश्र यह भी देखा जा रहा है कि जद यू की स्पेस पर राजद काबिज हो जाए। इस बार की पलटी से नितीश कुमार की साख पर भारी बट्टा लगा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भले ही राजद शून्य रहा हो लेकिन 2024 में तेजस्वी यादव को हल्के में कत्तई नहीं लिया जा रहा है। मुख्यमंत्री नितीश ही रहे हों लेकिन सत्ता से बेदखल होने के ठीक पहले 5 लाख युवाओं को मिली सरकारी नौकरी का बहुत हद तक श्रेय तत्कालीन तेजस्वी यादव को मिल रहा है। बाप (BAAP) के फार्मूले के साथ तेजस्वी यादव आत्मविश्वास से लबरेज लग रहे हैं। यहां बी का मतलब बहुजन, ए का मतलब अगड़ा, अगले ए का मतलब आधी आबादी ( महिलाएं) और पी का मतलब पुअर यानी गरीब। तेजस्वी ने कहा है कि राजद अब माई (मुस्लिम प्लस यादव) की पार्टी नहीं है बल्कि बाप की पार्टी भी है।
इस बार बिहार एनडीए में भाजपा 17 सीटों और जद यू उससे एक सीट कम 16 सीटों पर लड़ रही है। बिहार के एनडीए गंठबंधन में पहली बार यह हुआ कि जद यू भाजपा से कम सीटों पर लड़ रही हो। अब भाजपा के रू ब रू उनकी बड़े भाई की पदवी छिन गई है। कभी भाजपा के सामने तेवर दिखाने का एक भी मौका नहीं चूकने वाले नितीश कुमार ने अपनी घटती साख एवं कम होते वोट बैंक को भांपते हुए बिना ना नुकुर किए इसे स्वीकार भी कर लिया।
पटना के राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अगर राजद ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया तो वह जदयू के सामने की थाली ही खींचेगा। अब तक नितीश का कवच रहे अति पिछ्ड़ी जातियों ( ईबीसी) का तबका भी राजद की तरफ खिसक सकता है। ऐसा हुआ तो भाजपा भी नितीश का दाना पानी बंद करने की तरफ अग्रसर हो सकती है। नितीश भाजपा के आंखों की भी किरकिरी रहे हैं। जब वे भाजपा के साथ सरकार में मुख्यमंत्री रहे तो भाजपा के कोटे के किसी भी मंत्री की कभी एक नहीं चलने दी। वे मंत्री महज कागज के शेर बर बने रहे। बिहार में 2019 में भाजपा ने 17 सीटें, जदयू ने 16 सीटें और एलजेपी ने 6 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को एक सीट मिली थी लेकिन राजद का खाता भी नहीं खुल सका था। एक यह सवाल भी है कि क्या राजद इस बार इतनी बड़ी छलांग लगा पाएगा।
सुशासन बाबू की छवि के साथ अपनी जाति कुर्मी के महज 3 फीसदी होने के बावजूद बिहार में सबसे लंबे समय तक नितीश बाबू मुख्यमंत्री के रूप अजेय राज करते रहे। उन्होंने 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एक रिकार्ड कायम किया। उन्होंने अति पिछडी जातियों के एक ऐसे ब्रह्मास्त्र की रचना की कि भाजपा और राजद दोनो उनके हाथ की कठपुतलियां होने को मजबूर हुए। एक मुख्यमंत्री के रूप में उनकी अनगिनत उपलब्ध्यां रहीं। पलटते रहना उनका मिजाज कम रणनीति ज्यादा रही। मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल को बिहार का स्वर्ण युग कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।