कुरुक्षेत्र। हरियाणा की धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में महाभारत से लेकर कई ऐतिहासिक लड़ाइयां लड़ी गई है। इसी जगह पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। कुरुक्षेत्र के हर जगह पर कोई न कोई धार्मिक स्थल स्थित है, लेकिन यहां पर एक ऐसा मंदिर है, जो काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर में तो महिलाएं ही मंदिर में जाने से डरती हैं। ये है कुरुक्षेत्र के पिहोवा में सरस्वती तीर्थ पर स्थित कार्तिकेय मंदिर। पिहोवा के ‘कार्तिकेय महाराज’ के इस मंदिर में कई सालों से औरतों के प्रवेश पर मनाही है। महिलाएं इस मंदिर में जाना भी नहीं चाहती। इसका कारण इस मंदिर के देवता का श्राप है।
सरस्वती तीर्थ पर स्वामी कार्तिकेय का मंदिर
पिहोवा के ‘कार्तिकेय महाराज’ के इस मंदिर के बाहर फ्लैक्स बोर्ड पर हिंदी, पंजाबी और इग्लिश भाषा में साफ तौर पर महिलाओं के लिए चेतावनी लिखी भी हुई है। यूं तो पूरे भारत में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के अनेक मंदिर हैं। विशेषकर दक्षिण भारत में स्वामी कार्तिकेय के मंदिर है, जहां स्वामी कार्तिकेय की मुरुगन स्वामी के नाम से पूजा की जाती है। पिहोवा के सरस्वती तीर्थ पर स्वामी कार्तिकेय का मंदिर है। इसके पीछे की कहानी यह है कि, जो औरत कार्तिकेय महाराज की पिंडी के गलती से भी दर्शन का लेते है वो 7 जन्मों तक विधवा रहने का श्राप मिलता है।
पिंडी रूप में विराजित है स्वामी कार्तिकेय
भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय जी यहां पर पिंडी रूप में विराजित है। इसे स्वामी कार्तिकेय जी मंदिर नाम से जानते हैं। मान्यता है कि अगर इस मंदिर के गर्भगृह में महिलाएं जाकर दर्शन कर लें, तो वह सात जन्मों तक के लिए विधवा हो जाती है। इस बात में बाकायदा बोर्ड में लिखा गया है।
मंदिर में क्यों नहीं है महिलाओं की एंट्री?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान कार्तिकेय ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए ध्यान कर हे थे। ऐसे में देव इंद्र को इस बात की ईर्ष्या होने लगी कि कहीं ब्रह्मा जी उन्हें अधिक शक्तियां न दें। ऐसे में उन्होंने कार्तिकेय जी का ध्यान भंग करने के लिए कई अप्सराएं भेज दी। इस बाद से कार्तिकेय भगवान काफी क्रोधित हुए और उन्होंने शाप दे दिया कि अगर कोई महिला उनके ध्यान को भंग करने के लिए आती है, तो वह पत्थर की हो जाएगी। इसी के कारण मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं को जाने की पाबंदी है। वह बाहर से ही दर्शन करती हैं। इस मंदिर में सिर्फ महिलाओं को ही नहीं बल्कि नवजात बच्ची तक को गोद में लेकर नहीं जाया जाता है। इससे उनके जीवन पर भी बुरा असर पड़ता है।
पिंडी में चढ़ाया जाता है सरसों का तेल
स्वामी कार्तिकेय जी के मंदिर में भगवान को सरसों का तेल चढ़ाना शुभ माना जाता है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार, जब कार्तिकेय ने मां पार्वती से क्रोधित हुए थे। उन्होंने अपने शरीर का मांस और रक्त अग्नि में समर्पित कर दिया। ऐसे में भगवान शिव ने कार्तिकेय जी को प्रिथुडक तीर्थ (पिहोवा तीर्थ) जाने का आदेश दे दिया था। तब कार्तिकेय जी का गर्म शरीर को शीतलता देने के लिए ऋषि-मुनियों ने सरसों का तेल चढ़ाया था। तब उनके शरीर को शीतलता मिली थी। शीतल होने पर कार्तिकेय पिहोवा तीर्थ पर ही पिंडी के रूप में विराजित हो गए थे। तब से आज तक कार्तिकेय जी की पिंडी में सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है।
यह है पौराणिक कथा
मंदिर के महंत राजतिलक गिरी ने बताया कि मान्यता के अनुसार जब भगवान शंकर देवताओं में प्रथम पूजित होने का अधिकार देने के लिए अपने पुत्र कार्तिकेय का राजतिलक करने का विचार करने लगे, तब माता पार्वती अपने छोटे पुत्र गणेश का राजतिलक करवाने के लिए हठ करने लगी। तभी ब्रह्मा, विष्णु व शंकर सहित सभी देवी देवता एकत्र हुए और सभा में यह निर्णय लिया गया कि दोनों भाइयों में से समस्त पृथ्वी का चक्कर लगा कर जो पहले बैकुंठ पहुंचेगा, वही राजतिलक का अधिकारी होगा।
भगवान कार्तिकेय अपने प्रिय वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चल पड़े। गणेश जी अपने वाहन चूहे पर बैठकर चक्कर लगाने के लिए जाने लगे, तभी माता पार्वती ने गणेश जी को चुपके से कहा कि वत्स तुम यहीं पर इकट्ठे हुए समस्त देवगणों की परिक्रमा कर डालो क्योंकि त्रिलोकीनाथ यहीं विद्यमान हैं। माता पार्वती के ऐसा समझाने पर गणेश जी ने तीन चक्कर लगा कर भगवान शंकर जी को प्रणाम किया। भगवान शंकर विस्मित हुए और उन समेत सभी ने गणेश जी का राजतिलक कर दिया। उधर मार्ग में नारद ने कार्तिकेय को सारा वृतांत कह डाला।
कार्तिकेय पृथ्वी परिक्रमा पूरी करके सभा स्थल पर आ पहुचें और बोले, हे माता आपने मेरे साथ छल किया है। उन्होंने माता से कहा कि तुम्हारे दूध से मेरी त्वचा बनी हुई है, मैं इसको अभी उतार देता हूं। मांस उतार कर माता के चरणों में रख दिया और समस्त नारी जाति को श्राप दिया कि मेरे इस स्वरूप के जो स्त्री दर्शन करेगी, वह सात जन्म तक सुखी नहीं रहेगी। तभी देवताओं ने उनकी शारीरिक शांति के लिए तेल व सिंदूर का अभिषेक कराया। तब भगवान कार्तिकेय पृथुदक (पिहोवा) में सरस्वती तट पर पिंडी रूप में स्थित हो गए और कहा कि जो व्यक्ति मेरे शरीर पर तेल का अभिषेक करेगा, उसके पितर बैकुंठ में प्रतिष्ठित होकर मोक्ष के अधिकारी होंगे।