राज्य सरकार ने हाल ही में सोशल मीडिया पर गलत खबरों के प्रसार और डीपफेक (Deepfake) तकनीक के दुरुपयोग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए एक एडवाइजरी जारी की है। इसका उद्देश्य आम जनता में साइबर सुरक्षा (Cyber Security) और साइबर स्वच्छता (Cyber Hygiene) के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। एडवाइजरी के जरिए लोगों और संगठनों को डीपफेक के संभावित खतरों के बारे में जानकारी दी गई है और इसके बचाव के उपाय सुझाए गए हैं।
डीपफेक तकनीक क्या है?
डीपफेक एक ऐसी तकनीक है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके नकली वीडियो, ऑडियो और चित्र तैयार किए जाते हैं, जो वास्तविक और विश्वसनीय दिखते हैं। इसका उपयोग गलत सूचनाएं फैलाने, साइबर धोखाधड़ी और वित्तीय ठगी में किया जा सकता है। इसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति या संगठन की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना भी संभव है। घोटालेबाज इस तकनीक का उपयोग कर लोगों को धोखा दे सकते हैं, जैसे कि परिवार के सदस्य का रूप धारण करके धन की मांग करना।
डीपफेक से बचाव के उपाय
डीपफेक से बचने के लिए इसे पहचानना अत्यंत आवश्यक है। असामान्य भाव-भंगिमाएं, सिंथेटिक रंग-रूप, रोबोट जैसी आवाज़ें, और असंगत प्रकाश व्यवस्था जैसे संकेतों से डीपफेक की पहचान की जा सकती है। इसके अलावा, किसी भी डिजिटल सामग्री को बिना प्रमाणिक स्रोत के साझा नहीं करना चाहिए। सोशल मीडिया पर गोपनीयता सेटिंग्स का उपयोग करना और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन (Multi-Factor Authentication) को अपनाना भी सुरक्षा के उपाय हैं।
संगठनों के लिए सुरक्षा उपाय
संगठनों को डीपफेक से बचने के लिए डिजिटल वाटरमार्क (Digital Watermark) का उपयोग करने, कड़े सत्यापन प्रोटोकॉल (Verification Protocol) स्थापित करने और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन अपनाने की सलाह दी गई है। इसके अलावा, डीपफेक सामग्री की पहचान के लिए उन्नत पहचान उपकरण (Advanced Detection Tools) का उपयोग करना भी महत्वपूर्ण है।