पवन कुमार बंसल : हरियाणा की राजनीति, शासन और संस्कृति पर मेरी आगामी पुस्तक के अंश यदि जिले के डीएम (डीसी) और एसएसपी के बीच समन्वय बिना किसी संदेह के सही है और दोनों एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं, तो कानून और व्यवस्था की किसी भी गंभीर या अन्यथा स्थिति को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है।
रेशम सिंह सेवानिवृत्त एडीजीपी जो उस समय फरीदाबाद के एसएसपी थे ने बताया ।” में 1991 में डबुआ कॉलोनी फ़रीदाबाद में भड़के सांप्रदायिक दंगों के बारे में बता रहा हूँ। जब मैं और डीसी.के.के.खंडेलवाल स्वयं कार्रवाई कमांड सम्हाले थे। , तब इसे अल्प बल के साथ प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया था।
उस समय मैं एसएसपी फरीदाबाद था और श्री केके खंडेलवाल डीसी थे। रात करीब 8 बजे मुझे हमारे एसए से फोन आया कि कुछ लोग डबुआ कॉलोनी में मस्जिद को जलाने की योजना बना रहे हैं क्योंकि पुलिस स्टाफ पीपी डबुआ कॉलोनी ने जानवरों की खाल ले जा रहे एक ट्रक को अपने कब्जे में ले लिया है और पीपी के बाहर सड़क पर खड़ा कर दिया है।
उपद्रवियों ने खबर फैला दी कि गायें कट गयी हैं और ट्रक से खून निकल रहा है मैंने डीएसपी को तुरंत मौके पर पहुंचने को कहा किसी तरह डीएसपी को फोर्स इकट्ठा करने में समय लग गया और वे समय पर वहां नहीं पहुंच सके। इस बीच एसए से एक और फोन आया कि उन्होंने मस्जिद को जलाने का फैसला किया है।
मैंने अपने गनमैन को एक संतरी को छोड़कर पूरे गार्ड को तैयार करने के लिए कहा और मैं डीसी हाउस पहुंच गया, स्थिति बताई कुछ ही देर में खंडेलवाल जी तैयार हो गये हमने सुरक्षा के लिए एक-एक संतरी घर पर रखकर अपने घरो से फाॅर्स हटा ली। मौके पर पहुंचे और देखा कि एक छोटी सी दुकान जल रही है और हमने प्रभावी लाठीचार्ज का उपयोग करने का फैसला किया।
सभी SHO को निर्देश दिया गया कि वे डबुआ की ओर न दौड़ें, बल्कि अपने क्षेत्र से डबुआ की ओर आने वाली सभी सड़कों/गलियों को बंद कर दें और यह सुनिश्चित करें कि किसी को भी अशांत क्षेत्र की ओर आने की अनुमति न दी जाए और न रुकने पर कार्रवाई की चेतावनी दी जाए। श्री केके खंडेलवाल ने अपने एसडीएम, तहसीलदारों और फायर ब्रिगेड को संबंधित पुलिस अधिकारियों के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया था।
हम अलग-अलग आंदोलनकारियों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में सक्षम थे। जब अन्य फरीदाबाद वासी रात की नींद से जागे तब तक स्थिति सामान्य थी। तत्कालीन डीसी श्री खंडेलवाल द्वारा बहुत प्रभावी और समय पर मदद से स्थिति को नियंत्रण में लाया गया था अन्यथा एक औद्योगिक शहर होने के कारण इसे नियंत्रित करना बहुत ही मुश्किल हो जाता।
पूँछ का टुकड़ा।
ऐसी सैकड़ों घटनाओं का जिक्र मेरी किताब में होगा, जो अगले साल रिलीज होने की संभावना है, जब मैं पत्रकारिता में पचास साल पूरे कर लूंगा। पुस्तक युवा आईएएस और आईपीएस को ऐसी और अन्य अप्रिय स्थितियों से निपटने के गुर सिखाएगी और राजनेताओं और मीडिया का सामना कैसे करना है।
पुस्तक में यह भी उल्लेख किया जाएगा कि मैंने एच.आई.पी.ए, गुरूग्राम में प्रशिक्षु आईएएस को क्या कहा था यदि रोहतक के एस पी और डी सी का तालमेल और विश्वास सही होता तो आरक्षण के लिए जाटों द्वारा 2016 के आंदोलन के दौरान स्थिति को टाला जा सकता था।