पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सौदा साध की उस याचिका को बड़ी पीठ के पास भेज दिया है जिसमें उन्होंने पंजाब सरकार द्वारा 2015 के ईशनिंदा मामलों में सीबीआई के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। जांच की सहमति वापस लेने को चुनौती दी गई। ऐसा करते हुए कोर्ट ने चार सवाल पूछे हैं। याचिका में ईशनिंदा मामलों की जांच सीबीआई से जारी रखने की मांग की गई है। आदेश भी मांगा गया।
न्यायमूर्ति विनोद एस. भारद्वाज ने आज जारी एक विस्तृत आदेश में बड़ी पीठ के विचार के लिए चार प्रश्न तैयार किये हैं और इस मामले में निचली अदालत की आगे की कार्यवाही पर भी रोक लगा दी है।
दरअसल, अधिसूचना की वैधता और पवित्रता (सीबीआई जांच के संबंध में) उच्च न्यायालय की दो अलग-अलग एकल पीठों के साथ-साथ पंजाब विधानसभा, सी.बी.आई. के बीच है। जांच वापस लेने के लिए पारित प्रस्ताव की प्रवर्तनीयता के संबंध में मतभेद हैं न्यायालय द्वारा तय किए गए प्रश्न निम्नलिखित हैं जिनका उत्तर बड़ी पीठ द्वारा दिया जाएगा।
क्या किसी राज्य की विधायिका किसी विशेष एजेंसी के माध्यम से या उसकी ओर से किसी आपराधिक मामले की जांच करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करके राज्य कार्यकारिणी को आदेश जारी करने में सक्षम है और क्या इस तरह के क्षेत्राधिकार का प्रयोग जांच करने के बराबर होगा?
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क्या विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते समय एक अन्य अभियुक्त द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में उच्चतम न्यायालय द्वारा खोले गए कानून पर उच्च न्यायालय द्वारा पुन: परीक्षण का विकल्प खुला है?
क्या राज्य सी.बी.आई सी.बी.आई. द्वारा नियमित मामला दर्ज करने के बाद क्या वह अपने स्थानांतरण अधिसूचना को वापस लेने के लिए सक्षम एवं अधिकृत है या क्या ऐसे पंजीकृत मामलों में अंतिम रिपोर्ट केवल केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत की जा सकती है?
क्या ‘सब-साइलेंटियो’ का सिद्धांत तब लागू होगा जब इस न्यायालय ने उसी अधिसूचना के खिलाफ अन्य आरोपियों द्वारा दायर एक अन्य याचिका में वापसी अधिसूचना को बरकरार रखा है या क्या यह सभी आरोपियों के लिए बाध्यकारी मिसाल के रूप में कार्य करता है।
साल 2021 में सौदा साध ने पंजाब में जून और अक्टूबर 2015 के बीच श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान की तीन अलग-अलग घटनाओं की निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।