इंश्योरेंस रेगुलेटर इरडा ने 2011 से इंश्योरेंस खरीदारों को पोर्टेबिलिटी का अधिकार दिया है, जिसके तहत बीमाधारक अपनी पॉलिसी को एक इंश्योरेंस कंपनी से दूसरी कंपनी में स्विच कर सकते हैं। इस विकल्प का लाभ उठाने से पहले कुछ जरूरी बातें जानना ज़रूरी हैं।
इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी कब चुननी चाहिए?
- जब बीमाधारक अपनी मौजूदा कंपनी की सेवा या क्लेम सेटलमेंट प्रोसेस से संतुष्ट नहीं हैं।
- अगर कोई अन्य कंपनी बेहतर फीचर्स, ज्यादा कवरेज, या कम प्रीमियम ऑफर कर रही हो।
- जब पॉलिसी होल्डर की हेल्थकेयर जरूरतें बदल जाएं और नई जरूरतों के हिसाब से कोई दूसरी कंपनी बेहतर कवरेज दे रही हो।
पोर्टेबिलिटी के लिए कोई प्रोसेसिंग शुल्क नहीं लिया जाता, और न ही पुराने बेनिफिट्स का कोई नुकसान होता है। हालांकि, नई कंपनी में पुराने बीमारियों के वेटिंग पीरियड को ही आगे बढ़ाया जाता है।
पोर्ट कराते समय ध्यान देने योग्य बातें:
- इरडा के नियमों के अनुसार, पोर्टेबिलिटी प्रक्रिया को रिन्यूअल डेट से 45 दिन पहले शुरू करना आवश्यक है।
- नई कंपनी को अपनी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में पूरी और सच्ची जानकारी दें, ताकि भविष्य में क्लेम रिजेक्ट न हो।
- पुरानी और नई कंपनी के कवरेज की तुलना करें और सुनिश्चित करें कि नई पॉलिसी में आपकी सभी आवश्यकताएँ शामिल हों।
- एक भरोसेमंद इंश्योरेंस कंपनी चुनें, जो क्लेम सेटलमेंट रेश्यो और ग्राहक सेवा में अच्छी हो।
इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी में नुकसान:
अगर बिना पूरी जानकारी के पोर्टेबिलिटी कराई जाए, तो प्रीमियम बढ़ सकता है और नई कंपनी आपकी मेडिकल कंडीशन्स के आधार पर आवेदन अस्वीकार भी कर सकती है।
नया प्लान लेना या पोर्टेबिलिटी?
अगर आपकी पुरानी पॉलिसी पहले से वेटिंग पीरियड पूरा कर चुकी है, तो पोर्टेबिलिटी बेहतर हो सकती है। अगर कवरेज सीमित हो, तो नया प्लान लेना भी फायदेमंद हो सकता है, लेकिन इसमें नया वेटिंग पीरियड लागू होगा।