अम्बाला। किसान आंदोलन को लेकर नई अपडेट आई है। इस बार भी किसान लंबी लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। शम्भु और खनौरी बॉर्डर पर पक्का मार्चा लगाना शुरू कर दिया है साथ ही फुटपाथ पर सब्जियां उगाने जा रहे हैं। अंकुरित हो रहे प्याज को उन्होंने फुटपाथ पर सड़कों के किनारे उगाना शुरू कर दिया है। इससे बात स्पष्ट हो गई है कि पंजाब के किसान हरियाणा की सीमा पर ही पक्का मोर्चा लगाएंगे।
शंभू बॉर्डर पर किसानों की ओर से पक्की शेड बनाने और वहां सड़क किनारे किसानों की ओर से सब्जियों की बिजाई करने से भी इस बात को बल मिला है। इतना ही नहीं, लंगर का सामान व लक्कड़ भी ट्रालियों में भरकर शंभू बॉर्डर पर पहुंच रही हैं। चार किलोमीटर के दायरे में बैठे किसानों के पास गैस सिलेंडर व चूल्हे भी साथ में रखे हुए हैं जो सुबह व रात के समय चाय व दूध बनाने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं।
फुटपाथ की मिट्टी देख आया ख्याल
अमृतसर के अटारी बॉर्डर के नजदीक पहुंचे किसान काबल सिंह, मनजीत सिंह ने बताया कि उनके साथ सैकड़ों किसान इस आंदोलन में भाग ले रहे हैं। हाइवे के बीचों-बीच बने फुटपाथ की मिट्टी को देखा तो प्याज की फसल उगाने का ख्याल आया। हमारे पास जो प्याज थे उनमें से अंकुर फूटने लगे तो हमने पंजीरी के साथ उन्हें मिट्टी में दबा दिया जो कुछ दिनों बाद उगने शुरू हो गए हैं। अब ऊपर से चाकू के साथ काटकर उनके पौरेंठे बनाएंगे, जब प्याज तैयार हो जाएगा तो उसे सब्जियों में डाला जाएगा।
उन्होंने बताया कि हमारा लक्ष्य दिल्ली में जाकर आर्गेनिक सब्जियां उगाने का है जिसमें टमाटर, मिर्ची, मटर, लौकी के अलावा खरबूजे भी उगाने के लिए तैयारी की गई है। पिछली बार जब दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर बैठे थे, तब भी सब्जियां उगाकर लंगर का इंतजाम किया गया था। इसके अलावा शंभू बॉर्डर पर लक्कड़ व राशन से भरी ट्रालियां भी पहुंच रही हैं।
किसानों का अनुशासन
किसान भाई तेजिन्द्र सिंह ने बताया कि इस आंदोलन को आगे चलाते रहने की असली कुंजी इन किसानों का अनुशासन ही है उनका कहना है कि विरोध करना तो हमारा संवैधानिक हक है। इससे सामूहिक जवाबदेही की संभावनाएं पैदा होती हैं और मजबूत होती है वो उम्मीद जो किसानों के तमाम संगठनों ने जगाई है। धरने में मौजूद हर शख्स जिम्मेदारी के एक अटूट बंधन से बंधा है। उन्हें अच्छे से पता है कि अगर उनकी ओर से हिंसा हुई तो फिर हुकूमत उन्हें इसका जवाब और अधिक हिंसक बर्ताव से देगी। इसलिए अहिंसा ही सबके लिए एकमात्र रास्ता है।
घरों से निकलने पर मजबूर महिलाएं
हरे-पीले दुपट्टों में लिपटी महिलाएं, सड़क पर एक घेरे में बैठकर लंगर के लिए रोटियां बेल रही हैं। ये महिलाएं फरीदकोट व गुरदासपुर से आई हैं और भारतीय किसान यूनियन की सदस्य हैं। वो कहती हैं कि पिछले कई सालों से खेतों में काम करती आई हैं हमारे तो पूरे परिवार यहीं है। हमने अपने घरों में ताले लगा दिए और यहां प्रदर्शन करने आ गए हैं। वो कहती हैं मोदी ने सभी महिलाओं को घरों से निकलने पर मजबूर कर दिया है। कहा कि फसल और नस्ल को बचाने के लिए वह हर शहीदी देने के लिए तैयार हैं।
बता दें किसानों के दिल्ली कूच को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य 21 दिन से हरियाणा की सीमा से सटे पटियाला के शंभू-खनौरी और बठिंडा के डबवाली बॉर्डर में जुटे हुए हैं। रविवार को मोर्चा के नेताओं की ओर से छह मार्च को पंजाब, हरियाणा को छोड़ देश के अन्य राज्यों से किसानों के बिना ट्रैक्टर के दिल्ली के जंतर-मतर में जुटने की घोषणा की गई है।