Mughal emperor : दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर-द्वितीय के पड़पोते की विधवा सुल्ताना बेगम की याचिका खारिज कर दी। याचिका में उन्होंने लाल किले पर वैध उत्तराधिकारी होने का दावा करते हुए स्वामित्व या मुआवजे की मांग की थी। हालांकि, कोर्ट ने इसे अत्यधिक देरी के कारण खारिज कर दिया।
कोर्ट का फैसला: समय पर याचिका न दायर करने पर फटकार
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिका में ढाई साल की देरी को माफ करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा, “देरी का स्पष्टीकरण अपर्याप्त है, और इतने लंबे समय बाद इस मामले में सुनवाई का औचित्य नहीं बनता।”
सुल्ताना बेगम ने स्वास्थ्य समस्याओं और पारिवारिक परिस्थितियों का हवाला देते हुए देरी के लिए माफी मांगी थी। हालांकि, पीठ ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
याचिका में क्या था दावा?
सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में कहा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने उनके पूर्वज बहादुर शाह जफर को उनकी संपत्ति से वंचित कर निर्वासित कर दिया था। उनका दावा था कि लाल किला उनकी पारिवारिक संपत्ति है, जिस पर भारत सरकार का “अवैध कब्जा” है। उन्होंने सरकार से लाल किले का स्वामित्व लौटाने या मुआवजे की मांग की।
अदालत का रुख
इससे पहले दिसंबर 2021 में हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश ने भी याचिका को अत्यधिक विलंब का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि 150 साल के बाद इस तरह की मांग करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
सरकार का कब्जा और मुआवजे की मांग
सुल्ताना बेगम ने याचिका में केंद्र सरकार पर 1857 से लाल किले पर कब्जा करने का आरोप लगाया और इसके लिए मुआवजे की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि लाल किला उनके पूर्वजों की संपत्ति थी, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान जबरन छीन लिया गया।