Sunday, May 12, 2024
Homeधर्मजानिए कब है अपरा एकादशी, क्यों रखा जाता है अपरा एकादशी का...

जानिए कब है अपरा एकादशी, क्यों रखा जाता है अपरा एकादशी का व्रत

- Advertisment -
- Advertisment -

Apara Ekadashi 2023: हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्णक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस साल 15 मई को अपरा एकादशी (Apara Ekadashi 2023) है। अपरा एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी का हिंदू धर्म में काफी महत्व है।

अपरा एकादशी के दिन व्रत रखा जाता है और पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कहते हैं कि इस अपरा एकादशी का व्रत रखने से मन का सारा भय दूर हो जाता है इंसान को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है। जीवन में सुख समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

अपरा एकदाशी शुभ मुहूर्त (Apara Ekadashi 2023)

पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की ये तिथि 16 मई 2023 को सुबह 01 बजकर 03 मिनट पर समाप्त होगी। 15 मई को उदया तिथि प्राप्त हो रही है, इसलिए इसी दिन अपरा एकादशी व्रत रखा जाएगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त- सुबह 8 बजकर 54 मिनट से सुबह 10 बजकर 36 मिनट तक है।

पारण का समय-अपरा एकादशी के व्रत का पारण समय 16 मई को सुबह 6 बजकर 41 मिनट से 8 बजकर 13 मिनट है।

अपरा एकादशी पूजा विधि

अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा माता लक्ष्मी के साथ की जाती है।

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर सुबह स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहन लें।

भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते,  केला, आम, पीले फूल, पीला चंदन, पीले वस्त्र चढ़ाएं। इस दौरान ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें।

भगवान विष्णु को तिलक लगायें इसके बाद खुद भी तिलक लगायें।

अपरा एकदाशी व्रत कथा सुनें और इसके बाद प्रसाद का वितरण करें।

ये भी पढ़ें- 17 जून से इन राशियों को मिलेगा शनिदेव का साथ

 

अपरा एकादशी कथा 

बहुत वक्त पहले महीध्वज नामक एक राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज उससे बहुत ईर्ष्या करता था। एक दिन उसने राजा की हत्या कर दी और उसके शव को ले जाकर एक जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। वहां से जो भी व्यक्ति निकलता था आत्मा उसको बहुत परेशान करती थी। एक दिन एक तपस्वी वहां से निकल रहे थे तो आत्मा उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। इन्होंने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर अपने व्रत का सारा पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनि से मुक्त हो गया और उसको स्वर्ग की प्राप्ति हो गई।

 

- Advertisment -
RELATED NEWS
- Advertisment -
- Advertisment -

Most Popular