Tuesday, September 9, 2025
HomeदेशAI चैटबॉट भावनात्मक सुरक्षा और यथार्थ परीक्षण नहीं करते

AI चैटबॉट भावनात्मक सुरक्षा और यथार्थ परीक्षण नहीं करते

रोहतक : आधुनिक समाज में जहां डिजिटल तकनीक और ए. आई. चैटबॉट्स ने जिन्दगी के कई पहलुओं को आसान बना दिया है, वहीं मानसिक स्वास्थ्य के संकट में इन वर्चुअल साथियों पर भरोसा अनगिनत जोखिम लेकर आ रहा है। वर्ष 2024 की घटना में, एक अमेरिकी युवती ने आत्महत्या कर ली, उसने महीनों तक चैटबॉट से अपने दुख, हताशा, और आत्मघाती विचार साझा किए, लेकिन चैटबॉट न तो समस्या को समझ पाया, न ही कोई सच्ची मदद दे सका।

शोध परिणामों ने साफ दिखाया है कि चैटबॉट भावनात्मक सुरक्षा और यथार्थ परीक्षण नहीं करते, बल्कि अक्सर आत्महत्या या आत्महानी की प्रवृत्तियाँ बढ़ाते हैं। यह कहना है मनोचिकित्सा विभाग की जूनियर रेजिडेंट डाॅ. खुशबू का।

डाॅ. हितेश खुराना के अनुभव के अनुसार, ए. आई. चैटबॉट केवल बनाए हुए जवाब ही दे सकते हैं लेकिन उनकी “समझ” और “सहानुभूति” कृत्रिम है। वे न तो आपकी तकलीफों को सही मायने में सुन सकते हैं, न ही समय पर खतरनाक मानसिक लक्षणों की पहचान कर सकते हैं।

डाॅ. खुशबू ने बताया कि जब कोई व्यक्ति ऑनलाइन आत्महत्या या आत्महानी से जुड़ा सवाल पूछता है, तो चैटबॉट उसे समझने की बजाय सामान्य या अव्यवस्थित जानकारी दे सकता है, जोकि खतरनाक हो सकता है। लेकिन कुछ मायनो में यह मददगार भी सिद्ध हुआ है, जैसे कुछ ए. आई. टूल्स ऐसे है जो इस तरह की समस्याओं की पहचान करने और आवश्यक सहायता से जोड़ने में और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े स्टिग्मा (कलंक) को कम करने में मदद कर रहे है। डाॅ. खुशबू ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति किसी मनोरोग विशेषज्ञ के पास नहीं पहुंच पाता तो मान्यता प्राप्त चैटबोट की मदद ले सकता है लेकिन यह मदद भी मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह से ही लेनी चाहिए। ए. आई. के मानसिक परेशानियों में सुनियोजित उपयोग पर अब भी शोध जारी है।

डाॅ. हितेश खुराना ने बताया कि इसी के साथ यह समझना जरूरी है कि सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म भी मानसिक स्वास्थ्य पर गहरे नकारात्मक असर डाल सकते हैं। लगातार दूसरे लोगो से तुलना करने का प्रचलन, ‘लाइक्स’ और ‘फॉलोअर्स’ पर आधारित आत्ममूल्यांकन, ऑनलाइन बुलीइंग और वर्चुअल रिश्तों पर समय व्यर्थ करना, व्यक्ति में अकेलापन, असंतोष और अवसाद को बढ़ाता है।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की पूर्व संध्या पर डाॅ. सुजाता सेठी ने बताया कि कई अध्ययन यह भी दिखाते हैं कि अधिक समय सोशल मीडिया पर बिताने से नींद की समस्याएँ, ध्यान की कमी, आत्मसम्मान में गिरावट और आत्महत्या की प्रवृत्तियों में बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स झूठा जुड़ाव तो देते हैं, लेकिन असली भावनात्मक सहारा नहीं।

डाॅ. खुशबू ने बताया कि ऐसी परिस्थिति में क्या करें जब स्वयं को नुकसान पहुंचाने के ख्याल मन में आये :-

  • अपनी भावनाएं साझ करें- आत्महत्या की बात मन में आना कोई शर्म की बात नहीं बल्कि एक गंभीर समस्या का लक्षण है। अपने विश्वसनीय संबंधियों, मित्रों, शिक्षकों से परिवार के सदस्यों से मदद के लिए जरूर बातचीत करनी चाहिए।
  • तुरंत मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से मदद ले ।
  • अपने मन को सुनियोजित करने के लिए रोजमर्रा के कार्यों में भाग लेने का प्रयत्न करें।
  • टोल फ्री नम्बर पर संपर्क करें – न. 14416 (टेली मानस), यह 24 घंटे सातों दिन सहायता प्रदान करने वाला भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा एक कार्यक्रम है।
RELATED NEWS

Most Popular