Tuesday, May 14, 2024
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ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होये

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Valentine’s Day : इन दिनों वैलेंटाइन वीक चल रहा है। प्रेमी जोड़े और प्यार करने वालों के लिए ये काफी खास दिन होते हैं। प्रेम एक ऐसा मोह का बंधन है जिससे हर कोई किसी ना किसी रुप में बंधा हुआ है। प्रेम, आकर्षण, समर्पण, लगाव कुछ भी हो सकता है और प्रेम तो किसी से भी हो सकता है। ये कोई नहीं जानता है कि उसे कब किसी से प्रेम हो जायेगा। माता पार्वती का शिवजी के प्रति प्रेम, माता सीता का प्रभु राम के प्रति प्रेम, मीराबाई का कृष्ण के लिए प्रेम ये प्रेम के सबसे बड़े उदाहरण है।

यूं तो प्रेम की बहुत सारी परिभाषा है। प्रेम अनंत है, प्रेम एक बंधन है, प्रेम खोने का नाम भी है और पाने का नाम भी है। भक्त की अपने आराध्य के प्रति भक्ति भी प्रेम है। संत कबीरदास ने अपने दोहो के माध्यम से प्रेम की परिभाषा को अच्छे से समझाया है।

जानते हैं संत कबीर दास के प्रेम के लिए दोहे- 

कबीर यहु घर प्रेम का, खाला का घर नाँहि।
सीस उतारै हाथि करि, सो पैठे घर माँहि॥
 

परमात्मा का घर तो प्रेम का घर है, यह कोई मौसी का घर नहीं जहां मनचाहा प्रवेश मिल जाए। जो साधक अपने शीश को उतार कर अपने हाथ में ले लेता है वही इस घर में प्रवेश पा सकता है।

प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय ।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ॥

जो प्रेम का प्याला पीता है वह अपने प्रेम के लिए बड़ी से बड़ी आहूति देने से भी नहीं हिचकता, यहां तक की वह दक्षिणा के रूप में अपना सिर भी न्योछावर करने को तैयार रहता है। लेकिन लालची न तो अपना सिर दे सकता है और अपने प्रेम के लिए कोई त्याग करता है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआपंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम कापढ़े सो पंडित होय।

बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ कर संसार में कितने लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, लेकिन कोई ज्ञानी न हो सका। यदि कोई प्रेम का केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले तो वह वास्तविक रूप से प्रेम को समझकर सच्चा ज्ञानी हो जाता है।

जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं। प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं

जब इस हृदय में “मैं” यानी मेरे अंहकार का वास था तब इसमें ‘हरि’ नहीं थे और अब जब इसमें हरि का वास है तो इसमें से मेरे अहंकार का नाश हो चुका है। यह ह्रदय रूपी प्रेम गली इतनी संकरी है, जिसमें दोनों में से सिर्फ एक ही समा सकते हैं.।

जब तक मरने से डरे, तब तक प्रेमी नाहिं।
बड़ी दूर है प्रेम घर, समझ लियो मन माहिं॥

 

 

 

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