चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और मैसी यूनिवर्सिटी, न्यूजीलैंड के शोधार्थी एवं शिक्षक मोरिंगा (ड्रमस्टिक) पर मौसम में हो रहे बदलाव की वजह से पडऩे वाले प्रभाव पर संयुक्त रूप से रिसर्च का कार्य करेंगे।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने प्रोजेक्ट के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि जलवायु परिवर्तन एवं मौसम में हो रहे बदलाव के कारण मोरिंगा के बीज तथा पत्तियों में टैनिंन और एंटीओक्सीडेंट प्रोपर्टीज पर पडऩे वाले प्रभाव पर रिसर्च किया जाएगा। रिसर्च के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा ‘स्पार्क’ परियोजना को वित्तीय सहायता की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है।
उन्होंने बताया कि इसके लिए हिमालय रीज़न, उतराखंड व दक्षिणी क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से मौरिंगा के सैंपल लिए जाएंगे। शोध के लिए हकृवि द्वारा दो टीमों का गठन किया गया है। जिसमें विश्वविद्यालय की ओर से पीआई डॉ. जयंती टोकस व को-पीआई डॉ. अक्षय भूकर, न्यूजीलैंड विश्वविद्यालय की ओर से टीम में पीआई डॉ. क्रैग मैक गिल और को-पीआई डॉ. पैनी बैक को शामिल किया गया है।
डॉ. जयंती टोकस ने बताया कि मोरिंगा पर शोध के लिए विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के दो शोधार्थी मैसी यूनिवर्सिटी, न्यूजीलैंड का दौरा करेंगे। मोरिंगा को लेकर हकृवि में अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की जाएगी। इस कार्यशाला में दोनो विश्वविद्यालयों की टीमें संयुक्त रूप से भाग लेंगी।
मोरिंगा जिसे सहजन भी कहा जाता है। मोरिंगा की पत्तियां प्रोटीन का एक बड़ा स्त्रोत है और इसमें सभी महत्वपूर्ण एमीनों एसिड भी होते हैं। इसकी पत्तियां मुख्य रूप से कैल्शियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस, आयरन और विटामिन ए,डी,सी से भरपूर होती हैं। मोरिंगा की पत्तियां शरीर में ऊर्जा बढ़ाने के साथ-साथ डायबिटीज, इम्यून सिस्टम, हड्डियों और लीवर सहित विभिन्न बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं।