हिसार : पुलिस अधीक्षक मोहित हांडा ने कहा है कि ऑनलाइन खरीदारी या खाते से पैसे ट्रांसफर करने के लिए ज्यादातर लोग मोबाइल एप का इस्तेमाल करते हैं। अगर मोबाइल पर किसी सोशल मीडिया के जरिए एनीडेस्क मोबाइल एप का लिंक फॉरवर्ड होकर आ जाए तो उस पर क्लिक करने से बचें। यह एप बैंक खाते के लिए घातक हो सकता है।
पुलिस अधीक्षक मोहित हांडा ने गुरुवार को कहा कि आजकर साइबर ठग ठगी के लिए एनी एनीडेस्क का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि साइबर ठग प्रतिदिन धोखाधड़ी कर रहे हैं। पैसे हड़पने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं। ऐसे में किसी भी दूरस्थ डेस्कटॉप एप को अपने डिवाइस में डाउनलोड न करें, किसी भी व्यक्ति को अपनी आईडी, पासवर्ड, पिन, खाता संख्या आदि की जानकारी न दें। उन्होंने एनीडेस्क नाम के एक रिमोट डेस्कटॉप ऐप बारे आगाह किया है। एनीडेस्क एप ठगों के लिए एक बहुत ही सरल साधन है, क्योंकि यह उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट पर अलग-अलग मोबाइल और सिस्टम से कनेक्ट करने की अनुमति देता है। आम शब्दों में यह एक स्क्रीन शेयरिंग प्लेटफॉर्म की तरह है। अपराधी इसका उपयोग धोखा देने और ऑनलाइन ठगी के लिए कर रहे हैं।
गूगल पर नंबर ढूंढना हो सकता खतरनाक
पुलिस अधीक्षक का कहना है कि कुछ व्यक्ति गूगल पर मौजूद कस्टमर केयर का नंबर सर्च करके इस्तेमाल करते हैं और कुछ मामलों में पीड़ित खुद कुछ समस्याओं के समाधान के लिए कस्टमर केयर को कॉल करता है। ऐसे में धोखाधड़ी करने वाले का मकसद पीड़ित के मोबाइल फोन पर एनीडेस्क या टीम वीवर एप डाउनलोड करने के लिए बाध्य करना होता है। कोई भी एप डाउनलोड करने के बाद धोखाखड़ी करने वाले को 9 अंकों के रिमोट डेस्क कोड की आवश्यकता होती है। इसलिए वह उसके लिए पीड़ित से पूछताछ करेगा।
एक बार जब पीड़ित 9 अंकों वाला कोड बता देता है और एप की अनुमति दे देता है तो धोखाधड़ी करने वाले को अपने डिवाइस पर पीड़ित के डिवाइस की स्क्रीन देखने को मिल जाएगी और इसे वह रिकॉर्ड भी कर सकता है। जब वह अपने बैंकिंग या यूपी आई एप का आईडी या पासवर्ड टाइप करता है तो ठग उसे नोट कर लेता है। यह एप फोन के लॉक होने पर भी बैकग्राउंड में काम करता है। एंड्रायड फोन पर एनीडेस्क एप आसानी से धोखाबाज व्यक्ति को उसकी जानकारी के बिना पीड़ित के फोन की स्क्रीन को देखने और रिकॉर्ड करने की अनुमित देता है।