धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में श्री गुरु तेग बहादुर जी का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। श्री गुरु तेग बहादुर जी प्रेम, त्याग और बलिदान के सर्वोच्च प्रतीक हैं। आज उनके जन्म के मौके पर देश-विदेश में प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है।
श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1621 में पंजाब के अमृतसर में श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के घर में हुआ था। वह छठे गुरु हरगोबिंद जी के सबसे छोटे पुत्र थे। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। वह बचपन से ही धार्मिक, निडर, विचारशील और दयालु थे। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल श्री गुरु तेग बहादुर जी के छंदों में 59 शब्द और 15 रागों के 57 श्लोक हैं।
श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 1675 ई. में धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को मौत की सजा सुनाई थी, क्योंकि गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मुगल बादशाह के आदेश पर गुरु जी का सबके सामने सिर कलम कर दिया गया।
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दिल्ली में गुरुद्वारा श्री सीस गंज साहिब और गुरुद्वारा श्री रकाब गंज साहिब श्री गुरु तेग बहादुर जी के महान बलिदान का वर्णन करते हैं जिन्हें ‘हिंद की चादर’ के नाम से जाना जाता है। यह गुरुजी के निडर आचरण, धार्मिक दृढ़ता और नैतिक उदारता का सर्वोच्च उदाहरण था। गुरु जी एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे जिन्होंने मानव धर्म और वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत दी।
भारत में, 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस (शहीद दिवस) के रूप में मनाया जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में साल के इस दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है। इस दिन श्री गुरु तेग बहादुर जी को अपने धर्म का पालन करने के लिए उत्पीड़ितों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने के लिए याद किया जाता है।