नई दिल्ली। पति-पत्नी के झगडे से बच्चों का बचपन खतरे में है। पढ़ाई में पिछड़ना, चोरी करना या फिर टीवी ज्यादा देखना…माता-पिता को लगता है कि बच्चा बिगड़ रहा है। यह सोच भी नहीं पाते कि इसकी वजह उनका आपसी झगड़ा है, जो वे बच्चे के सामने करते हैं। यह हकीकत तब सामने आती है जब बच्चे को मनोचिकित्सक के पास लाया जाता है। दरअसल मां-बाप के झगड़े से बच्चे को मानसिक तनाव होता है जिसकी वजह से उसके व्यवहार में बदलाव आता है। इतना ही नहीं अगर कोई गर्भवती घरेलू हिंसा का शिकार हो तो, गर्भस्थ शिशु पर गंभीर असर पड़ता है।
खेलने वाला बच्चा हो जाता है उदास और गुमसुम
बदलती जीवन शैली ने रिश्तों के ताने – बाने पर भी असर दिखाना शुरू कर दिया है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि पति – पत्नी के बीच पहले जैसी सहन शक्ति नहीं रही। नतीजा उनके बीच के झगड़े तलाक तक पहुंच रहे हैं। इसका सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ रहा है। कई स्टडी बताती है कि बच्चे पर माता – पिता के झगड़ों का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है । माता-पिता के झगड़े में न तो उसकी जरूरत पूछी जाती है और न ही पूरी की जाती है। इस दौरान वह मोबाइल के करीब जाता है, अपने मन की करता है और सही गलत का फर्क उसे पता नहीं है। क्योंकि उसे कभी किसी ने बताया ही नहीं । बच्चे का काम हसना खेलना होता है पर माता पिता के झगड़े में उसकी खुशी गायब हो जाती है । कभी हसने खेलने वाला बच्चा उदास और गुमसुम रहने लगता है।
पांच-छह साल तक के बच्चों पर ज्यादा असर
मनोचिकित्सक बताते हैं कि मां-बाप के झगड़े का असर पांच-छह साल तक के बच्चों पर ज्यादा पड़ता है। वे उनके सामने झगड़ते हैं तो इसका बच्चों के पूरे जीवन पर प्रतिकूल असर रहता है। उनका मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है। आगे चलकर इन बच्चों के असामान्य या असामाजिक व्यक्तित्व के रूप में विकसित होने का खतरा भी ज्यादा होता है। गर्भवती के साथ मारपीट-झगड़े का असर तो और भी घातक होता है। इसकी वजह से पैदा होने वाला शिशु दिमागी और शारीरिक रूप से कमजोर हो सकता है।
गर्भस्थ शिशु के दिमाग पर पड़ता है प्रभाव
बच्चों का दिमाग बड़ों की अपेक्षा जल्दी सीखता है। जब बच्चा गर्भ में होता है तो पूरी तरह मां से ही जुड़ा होता है। गर्भावस्था में मारपीट होती है तो महिला की भावनाएं बच्चे के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। ऐसे दंपतियों की कमी नहीं जो आपस में झगड़ते रहते हैं। ये मामले पुलिस और परामर्श केंद्र तक भी पहुंचते हैं। इस साल सिर्फ दिसंबर में आशा ज्योति केंद्र में आए इस तरह के झगड़े के मामलों में 36 प्रतिशत गर्भवतियों और 40 फीसदी छह साल तक के बच्चों की मां के साथ हुए। महिला थाने में दर्ज मामलों में यही प्रतिशत क्रमश: 56 और 62 और परामर्श केंद्र में 60 और 65 रहा।
कुछ याद नहीं रहता
छह साल का बच्चा स्कूल और ट्यूटर द्वारा पढ़ाई गई किसी भी बात को याद नहीं रख पाता था। परेशान माता-पिता ने बच्चे को डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने बच्चे से जब अकेले में बात की तो पता चला उसकी समस्या की जड़ में माता-पिता रोज-रोज का झगड़ा है। वहीँ एक पांच साल का बच्चा हर वक्त सहमा-सहमा रहता है। तेज आवाज में बोला जाए तो रोने लगता है। हालांकि बाकी व्यवहार सामान्य बच्चों की तरह ही है। मनोचिकित्सक को दिखाने पर मालूम हुआ यह पिता द्वारा उसकी मां के साथ गाली-गलौज और मारपीट करने का असर है।
आईक्यू होता है कम
मनोचिकित्सक दिनेश राठौर का कहना है कि गर्भावस्था में अगर मां के साथ मारपीट होती है तो इसका शारीरिक व मानसिक रूप से बच्चे पर असर पड़ता है। अगर गर्भावस्था में मां के साथ लगातार हिंसा हो रही है तो बच्चे का आईक्यू सामान्य से कम भी हो सकता है। चाहे बच्चा गर्भ में हो या पांच-छह साल तक का, मां के साथ हिंसा होती है तो इसका पूरा प्रभाव उस पर पड़ता है। अगर मां के साथ पिता मारपीट करता है तो बच्चे कुंठित हो जाते हैं और सामान्य बच्चों से अलग व्यवहार करते हैं।
शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ादायक
मनोचिकित्सक शालिनी खन्ना कहती हैं कि माता-पिता को अपने बच्चों की श्रवण सीमा के भीतर बहस नहीं करनी चाहिए। कई मनोविज्ञानी हमे बताते है की जिन बच्चों के माँ बाप उनके सामने झगड़ते हैं या हिंसा का प्रयोग करते हैं, वह बच्चे अवसाद, चिंता और व्यवहार के मुद्दों से जूझते हैं। जब माता-पिता लड़ रहे होते हैं, तो यह बच्चों के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ादायक होता है। उनका रक्तचाप बढ़ जाता है (बहुत छोटे बच्चों में भी)। बच्चों के पास यह सोचने समझने की बेजोड़ व् अद्भुत क्षमता होती है, वे चीजों की जिम्मेदारी को समझते हैं। यदि माता-पिता लड़ रहे हैं, तो उन्हें लगता है कि यह वास्तव में उनकी गलती है। अक्सर देखा गया है की जिन बच्चों ने बहुत झगड़ालू माता पिता के साथ जीवन बिताया है, वह बड़े होकर अक्सर गुसैल, अड़ियल व् रिश्तों में दुखी रहते हैं।