Fake Admission: हरियाणा के सरकारी स्कूलों में चार लाख फर्जी एडमिशन (Fake Admission) दिखाने के मामले पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अब तक इस मामले के दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाही ना होने पर हाईकोर्ट ने सीबीआई को फटकार लगाई है।
फर्जी एडमिशन (Fake Admission) मामले में तीन सप्ताह के भीतर जांच रिपोर्ट पेश करने का आदेश
फर्जी एडमिशन मामले में कोर्ट ने सीबीआई को आदेश दिया है कि वे तीन सप्ताह के भीतर जांच रिपोर्ट और इस मामले से जुड़े रिकॉर्ड को कोर्ट में पेश करें। हाई कोर्ट के जस्टिस राज मोहन सिंग्ह और जस्टिस एच एस बराड़ ने यह आदेश करनाल निवासी सुनील कुमार और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
इस मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि कोर्ट के आदेश पर हरियाणा सरकार की एसआइटी ने नवम्बर 2019 में सीबीआई को सील बंद रिपोर्ट सौंपा था। कोर्ट ने तीन सप्ताह में सीबीआई को इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट देने का आदेश दिया था लेकिन सीबीआई ने आज तक स्टेटस रिपोर्ट नहीं दी। सीबीआई की ओर से कोर्ट को बताया गया कि हाई कोर्ट के जांच करने के आदेश के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर दी थी।
जानते हैं क्या है पूरा मामला
ये पूरा मामला साल 2016 का है। हरियाणा सरकार ने गेस्ट शिक्षकों को बचाने के लिए एक अपील दाखिल की थी। इस दौरान कोर्ट को कुछ चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। कोर्ट ने सर्च किया कि 2014-15 में सरकारी स्कूलों में 22 लाख छात्र थे, जबकि 2015-16 में इनकी संख्या घटकर मात्र 18 लाख रह गई थी।
उस दौरान हरियाणा सरकार से पूछा कि अचानक चार लाख बच्चे कहां गायब हो गए, लेकिन हरियाणा सरकार ने तत्कालिक जवाब नहीं दिया। इस पर हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि चार लाख फर्जी दाखिले कर सरकारी राशि हड़पने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
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इस मामले में सरकार ने अधिकारियों की एक कमेटी बनाई, जो यह देखेगी कि फर्जी दाखिले फंड का हड़पने के लिए थे या सरप्लस गेस्ट टीचर को बचाने के लिए। इस मामले में सीनियर आईपीएस अधिकारी को जांच का जिम्मा सौंपा गया था, जिस पर हाई कोर्ट ने सरकार को खरी-खरी सुनाया।
हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल को तलब किया और पूछा कि अब कोर्ट को शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर भरोसा नहीं है, तो यह बताया जाए कि इस मामले में निष्पक्ष जांच किस एजेंसी से करवाई जाये। बाद में हाईकोर्ट ने इस मामले को साल 2019 में सीबीआई को सौंपा था।