UP News : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने आंगनवाड़ी पोषण वितरण व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव किया है। यह बदलाव सिर्फ सरकारी टेंडरों की नीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि करोड़ों बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं के पोषण अधिकार की रक्षा का निर्णायक कदम है।
इस बदलाव से न सिर्फ व्यवस्था को पारदर्शी बनाया है बल्कि ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम भी बनाया है। यही कारण है कि वर्षों से लाभ में रहने वाली निजी कंपनियां और ठेकेदार अब अदालती लड़ाई को हथियार बनाकर इस नई व्यवस्था को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
देश की सबसे बड़ी बाल पोषण योजना, ICDS (एकीकृत बाल विकास योजना), के तहत टेक होम राशन (THR) और आंगनवाड़ी केंद्रों पर पके हुए भोजन की आपूर्ति होती है। अकेले उत्तर प्रदेश में इस योजना पर हर साल लगभग ₹5,000 करोड़ खर्च होते हैं। यह राशि वर्षों से कुछ निजी कंपनियों के लिए स्थायी कमाई का जरिया बनी रही, जिनमें प्रमुख रही ग्रेट वैल्यू फूड्स जो दिवंगत शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा से जुड़ी कंपनी है। यह कंपनी वर्ष 2002 से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस समर्थित सरकारों के दौरान पोषाहार अनुबंध हासिल करती रही, बावजूद इसके कि गुणवत्ता को लेकर कई बार गंभीर सवाल उठे।
पूर्ववर्ती सरकारों ने निजी कंपनियों को पहुंचाया लाभ
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक ने इन कंपनियों द्वारा वितरित रेडी-टू-ईट फूड की गुणवत्ता पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में स्पष्ट निर्देश जारी किए कि पोषण आपूर्ति का कार्य स्थानीय महिला SHGs को सौंपा जाए ताकि न केवल रोजगार बढ़े बल्कि गुणवत्ता भी बेहतर हो। लेकिन यूपी की पूर्ववर्ती सरकारों ने इन निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए टेंडर नियम ऐसे बनाए कि केवल बड़ी कंपनियां ही पात्र हों। इससे SHGs की भागीदारी लगभग असंभव हो गई।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद आया बदलाव
- 2017 में जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्यभार संभाला, तो उन्होंने इस अनुचित व्यवस्था को सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाए। सरकार ने श्वेत पत्र जारी कर पूर्ववर्ती सरकारों के घोटालों का खुलासा किया और पोषाहार व्यवस्था को पारदर्शी और सामुदायिक बनाने की घोषणा की। शुरुआत में 18 जिलों में SHGs को यह जिम्मेदारी दी गई जो आज 43 जिलों तक पहुंच चुकी है। शेष जिलों में यह जिम्मेदारी नैफेड जैसे सार्वजनिक उपक्रम को दी गई है, ताकि गुणवत्ता से समझौता न हो।
- इन परिवर्तनों का उद्देश्य न केवल ठेकेदार लॉबी को हटाना था बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना भी था। UN वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के सहयोग से ब्लॉक स्तर पर महिला SHGs की पोषण इकाइयां स्थापित की गईं, जिनमें SC/OBC समुदाय की महिलाएं भी शामिल हैं। वर्तमान में लगभग 68,000 महिला SHGs इस व्यवस्था से जुड़ी हैं और 1.8 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों तक पोषाहार पहुंचा रही हैं। 1.6 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को इसका सीधा लाभ मिला है।
- अब पैसा गांवों की महिला स्वयं सहायता समूहों को दिया जा रहा है। ये महिलाएं खुद पैसे का हिसाब रखती हैं, अनाज खरीदती हैं, उसे पैक करती हैं और फिर जरूरतमंदों तक पहुंचाती हैं। इस पूरे काम में उन महिलाओं को भी कुछ आमदनी मिल जाती है। करीब-करीब हर महिला समूह महीने में 10,000 से 12,000 रुपये तक बचा लेती हैं, जो उनके लिए मुनाफा होता है।
पोषण संबंधी चिंताओं की आड़ में अदालती मामले
लेकिन यह बदलाव ठेकेदार लॉबी को रास नहीं आया। नवंबर 2024 में हाईकोर्ट, लखनऊ बेंच में एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें आरोप लगाया गया कि SHGs द्वारा वितरित पोषाहार गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतरता। हाईकोर्ट ने इस पर अंतरिम आदेश जारी कर निविदा प्रक्रिया पर रोक लगा दी, जिससे राज्य सरकार के प्रयासों को झटका लगा। फरवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को “बिना सोच-विचार के और अधिकार क्षेत्र से बाहर” करार देते हुए रद्द कर दिया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह पोषाहार वितरण सुचारू रूप से जारी रखे।
यह फैसला एक बड़ी जीत थी, न केवल योगी सरकार के लिए, बल्कि उन लाखों महिलाओं के लिए भी जो इस प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हैं। अब यह स्पष्ट है कि जो भी निजी हित SHGs को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें न्यायालय से समर्थन नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए इस निर्णय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस योजना को अब किसी भी स्वार्थ के कारण रोका नहीं जा सकता।