Thursday, December 12, 2024
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कुरुक्षेत्र पहुंचे केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत, बोले- अब क्षेत्रिय स्तर पर होने चाहिए अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन

कुरुक्षेत्र : केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र शेखावत (Gajendra Shekhawat) ने कहा कि भारत की पौराणिक संस्कृति, संस्कारों और विचारों को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए देश में केवल कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर ही अपार संभावनाएं है। इस विषय को लेकर कुरुक्षेत्र की पावन धरा से पूरे विश्व को आस्था के साथ-साथ ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी समझाया जा सकता है। इसलिए देश की भावी पीढ़ी को आस्था के साथ जोड़ने के लिए देश के सभी संतों और विद्ववानों को बार-बार एक मंच पर बैठकर मंथन करना होगा। इतना ही नहीं भविष्य में अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन क्षेत्रिय स्तर पर अलग-अलग स्थानों पर होने चाहिए।

केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र शेखावत मंगलवार को गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के प्रयासों से और केडीबी के तत्तवाधान में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में अंतराराष्ट्रीय गीता महोत्सव के पावन पर्व पर आयोजित पहले अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में बोल रहे थे। इससे पहले केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र शेखावत, गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज, राजकोट से संत परमात्मानंद महाराज, अयोध्या श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय डा. भीमराव अंबेडकर शोध संस्थान के निदेशक डा. प्रीतम सिंह, कुरुक्षेत्र 48 कोस तीर्थ निगरानी कमेटी के चेयरमैन मदन मोहन छाबड़ा, संत राजेश कुमार, वैष्णों देवी मंदिर के मुख्य पुजारी सुदर्शन महाराज, मां भद्रकाली शक्तिपीठ के संचालक सतपाल शर्मा महाराज ने दीपशिखा प्रज्ज्वलित करके विधिवत रुप से अखिल भारतीय देव स्थानम सम्मेलन का शुभारंभ किया।

इस दौरान सभी संत जनों ने संकल्प भी लिया कि बांग्ला देश में हिंदूओं और मंदिरों की रक्षा के लिए गीता जयंती दिवस पर गीता श्लोकों को समर्पित किया जाएगा। इस दौरान देश के 35 धामों से आए संतों ने अपने परिचय देने के साथ-साथ मंदिरों के प्रति युवाओं की आस्था फिर से बने, जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत ने गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र की पावन धरा से स्वामी ज्ञानानंद महाराज की सोच के कारण देश के सभी प्रमुख धामों के संत और संचालक एक मंच पर एकत्रित हुए है। देश में शायद पहली बार संतों के अनूठे संगम को देखने का अवसर मिला है। यह अवसर कुरुक्षेत्र के अंतराराष्ट्रीय गीता महोत्सव के पावन अवसर पर देखने को मिला है।  इस अखिल भारतीय देव स्थानम सम्मेलन के मंच से भारत के मंदिरों के प्रति आस्था बने, इसका सूत्रपात महोत्सव के दौरान हो गया है। इस देश की संस्कृति और सभ्यता हजारों वर्ष पुरानी है, लेकिन समय के बदलाव के साथ-साथ अन्य देशों की सभ्यता और संस्कृति लुप्त हो गई, लेकिन भारत की सनातन संस्कृति आज भी संरक्षित है। इस संस्कृति को नष्ट करने के लिए अनेकों आक्रमण और अत्याचार भी हुए। इतना ही नहीं शिक्षा के केंद्रों और चेतना के केंद्र मंदिरों को भी नष्ट करने का प्रयास किया गया। इन तमाम पहलूओं के बावजूद आज भी प्राचीन संस्कृति और संस्कार विद्यमान है।

पौराणिक काल में मंदिर थे देश की संस्कृति, संस्कार और साहित्य का केंद्र : परमात्मानंद

राजकोट के संत परमात्मानंद महाराज ने कहा कि पुरातन काल से ही मंदिरों की आस्था को बरकरार रखने का कार्य हमारे पूर्वजों ने किया, लेकिन गुलामी काल खंड में मंदिरों को क्षति पहुंचाई गई और परंपराओं को लुप्त करने का प्रयास किया गया। इस देश में संस्कृति, संस्कार, न्याय प्राचीन काल में मंदिरों में ही होते थे। इतना ही नहीं मंदिरों में ही कला, साहित्य सेवाओं का संवर्धन भी होता था। इस देश की आठवीं और बारहवीं सदी के शिलालेख में इन तमाम विषयों को देखा गया। लेकिन विडंबना यह है कि आज मंदिर केवल दर्शन का केंद्र बन गए है और लेकिन अव्यवस्था व अन्य कारणों से युवा पीढ़ी मंदिरों से विमुख हो गई है। इसलिए इस अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में सभी धामों से आए संतों से प्रार्थना की जा रही है कि परंपरा में समानता लाना जरुरी है। इसके लिए सामांतर चर्चा होनी चाहिए। अगर समय रहते चर्चा नहीं हुई तो वर्ष 2050 तक देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि युवाओं को प्राचीन संस्कृति से जोडऩे की जरुरत है तथा मंदिरों में स्वच्छता और व्यवस्था पर ध्यान देने की जरुरत है।

भारत की आत्मा बसती है तीर्थ स्थलों और मंदिरों में : चंपत राय

श्रीरामजन्म भूमि अयोध्या ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि मंदिरों और तीर्थों के विकास से ही भारत का विकास होगा। इसके प्रयास सरकार की तरफ से लगातार किए जा रहे है और अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण करके रामलला को विराजमान किया गया है। इस देश की आत्मा तीर्थों और मंदिरों में बसती है। इसलिए देश को जीवित रखने के लिए मंदिरों और तीर्थों का विकास जरुरी है। इससे देश की परंपरा भी बची रहेगी। सभी तीर्थ स्थलों पर स्वच्छता पर विशेष फोकस रखना चाहिए तथा मंदिरों में पानी, शौचालय, शैड, बैठने की व्यवस्था जैसी तमाम सुविधाए होनी चाहिए।

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