हरियाणा के जींद जिले की उचाना की रामलीला बहुत मशहूर हुआ करती थी। इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती थी। लेकिन बीते 30 सालों से यहां रामलीला का मंचन नहीं हो रहा है। पुरानी मंडी में एक फड़ को तो रामलीला मैदान के नाम जाना जाता है। यहां पर नवरात्र की पंचम पर होने वाला नाटक मां, बेटा प्यार, सत्यवादी राजा हरिचंद्र इतना प्रसिद्ध था कि लोग जिस दिन नाटक होता था उस दिन दोपहर 12 बजे ही रामलीला मैदान पहुंच कर अपने-अपने स्थान के लिए चारपाई लगाने लग जाते थे।
पुराने कलाकार आज भी इस रामलीला को याद करते हैं। कलाकारों का कहना है कि युवा पीढ़ी का रामलीला मंचन को लेकर मोह भंग होने से अब रामलीला नहीं हो रही है। साल 1993 में उचाना में आखिरी बार रामलीला हुई इसके बाद यहां कोई रामलीला का मंचन नहीं हुआ।
आज के दौर की युवा पीढ़ी को नहीं पता कैसे होती है रामलीला
रामलीला में काफी सालों तक श्रीरामचंद्र का किरदार निभाने वाले चंद्रपाल शर्मा ने कहा कि कई दिनों पहले से ही रामलीला की तैयारी शुरु हो जाती है। पेटी बजाने वाला बुला कर शहर की धर्मशाला में अभ्यास होता था। रामलीला को लेकर लोगों में इतना जुनून था कि रामलीला की झंडी बांधने से लेकर स्टेज बनाने सहित अन्य कार्य सभी मिलकर करते थे। आज के वक्त में सिर्फ मोबाइल, टीवी तक लोग सीमित होकर रह गए है। युवा-बच्चों को पता तक नहीं है कि रामलीला का कैसे की जाती थी।
कलाकारों को दिया जाता था सम्मान
वहीं लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले सुरेश गर्ग बोले कि कलाकारों को लोग सम्मान देते थे। सम्मान इतना होता था कि कलाकार जब रामलीला में किरदारों की ड्रेस पहन कर आते थे तो उनके पांव तक लोग छूते थे। समय के साथ सब कुछ बदल रहा है। आधुनिकता की मार से सब कुछ प्रभावित हो रहा है। लंका दहन का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था।
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