Saturday, November 22, 2025
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विश्व ओजोन दिवस पर विशेष : जलवायु परिवर्तन से मौसम की चाल बिगड़ रही है, ऋतुओं के चक्र में भी बदलाव

विश्व ओजोन दिवस 2024 : सम्पूर्ण भारत में लगातार जलवायु परिवर्तन का प्रभाव साफ तौर पर देखने को मिल रहा है। वहीं जलवायु परिवर्तन से मौसम की चाल बिगड़ रही है। पिछले कुछ सालों से लगातार मौसम की चरम स्थितियां देखने को मिल रही है।

गर्मियों में प्रचण्ड गर्मी, सर्दियों में प्रचण्ड ठंड, साथ ही बारिश भी चरम सीमा पर हो रही है। जहां पहले सूखाग्रस्त इलाके थे। वहां अत्यधिक बारिश से बाढ़ और जलभराव की स्थिति, वैसे ही जहां पहले बाढ़ आती थी वहां सूखाग्रस्त क्षेत्र होने लगा है वहां आमजन बारिश को तरसे है। ‌हरियाणा के कई जिलों में कम बारिश देखने को मिली है।

इस साल उदाहरण हमारे सामने है। राजस्थान मध्यप्रदेश पर बारिश ने कहर बरपाया है वहीं बिहार झारखंड सूखे की चपेट में हैं। सर्दी के दिनों में कमी गर्मी के दिनों में बढ़ोत्तरी हो रही है। मौसम अपनी चरम परिस्थितियां दिखा रहा है ऋतुओं के चक्र में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ सालों से सर्दी और गर्मी का असर आमतौर पर देरी से महसूस हो रहा है वहीं मानसून का आगमन और वापिसी भी देरी से होने लगी है।बसंत ऋतु के दर्शन ही नहीं होते हैं।

मौसम विशेषज्ञ डॉ चंद्र मोहन ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन परत में गिरावट से सम्पूर्ण इलाके में लगातार मौसम परिवर्तन के व्यार लगातार साफ़ तौर पर देखने को मिल रहें हैं।सूर्य के प्रकाश के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होगा। लेकिन अगर ओजोन परत न होती तो सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन के लिए बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचाती। यह समताप मंडलीय परत पृथ्वी को सूर्य की अधिकांश हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाती है। सूर्य का प्रकाश जीवन को संभव बनाता है, लेकिन ओजोन परत जीवन को बचाने को संभव बनाती है क्योंकि जीवन का मूलाधार ओजोन परत है जैसा कि हम जानते हैं।विश्व ओजोन दिवस 2024 की थीम “जीवन के लिए ओजोन” है , जो सभी जीवित जीवों के अस्तित्व के लिए ओजोन परत की सुरक्षा के दीर्घकालिक महत्व पर प्रकाश डालती है।

दुनिया में 16 सितंबर को ओजोन दिवस मनाया जाता है। दरअसल, पृथ्वी के संरक्षण के लिए ओजोन परत की काफी अहम भूमिका होती है। पृथ्वी पर जीवन संभव बनाने के लिए ओजोन परत बेहद महत्वपूर्ण है। हर साल ओजोन दिवस मनाने का उद्देश्य है कि लोगों को इसके बचाव के लिए जागरूक किया जाए और इसके महत्व को समझा जा सकें।साथ ही साथ पृथ्वी के सभी वनस्पतियों और जीवों पर विशेषकर मानव पर लगातार प्रति कुल प्रभाव देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन के साथ अल-नीनो और ला-नीनो भी मौसम और ऋतुओं में बदलाव की मुख्य भूमिका अदा करते हैं जिसकी वजह से मानसून के आगमन और वापसी में बदलाव और लगातार कमजोर पश्चिमी मौसम प्रणालियों का कमजोर होना साथ ही साथ ऊपरी वायुमंडल की जेट धाराओं का डायवर्सन आदि भी मौसम चक्र में परिवर्तन कर रहे हैं। इन सभी जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन परत में गिरावट और प्रदूषण में बढ़ोतरी में मानव अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रहा है। इसके अलावा मानव के द्वारा लगातार अमानवीय कृत्य और व्यवहार जिनमें पेड़ों की कटाई,खनन कार्य, परिवहन के साधन, उधोगों, अनियंत्रित जनसंख्या, नगरीकरण, जहरीली गैसों का स्राव, ग्रीनहाउस प्रभाव, पराली जलाने की गतिविधियां, पर्यावरण प्रदूषण, गंदगी के बड़े बड़े पहाड़, जहरीले पदार्थ और पानी का फैलाव, भी जलवायु परिवर्तन और इसी प्रकार के अनेक कारण है। जिसकी वजह से सम्पूर्ण इलाके में लगातार जलवायु परिवर्तन से और मौसम चक्र में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे हैं। गर्मी हो रही है लम्बी और सिकुड़ रहा है सर्दी और बरसात का दायरा और बसंत ऋतु समाप्त प्राय हों रही है। इसलिए मानव को प्रकृति से खिलवाड़ की जगह उसके साथ सामंजस्य करने की जरूरत है। साथ ही साथ किसान भाइयों को भी इस मौसमी चक्र में बदलाव के साथ अपने कृषि फसलों के चक्र को सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है। क्योंकि पिछले कुछ सालों से लगातार कृषि गतिविधियों जैसे बिजाई और कटाई पर मौसम की चरम स्थितियों का प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहा है।

वर्तमान परिदृश्य में लगातार मौसम में बदलाव और तापमान में उतार चढाव और कड़ाके की ठंड की चरम स्थितियां देखने को मिल रही है।जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन परत में गिरावट से मौसम चक्र का प्रभाव पेड़ पौधे शाकाहारी मांसाहारी और मानव पर ही नहीं बल्कि फसल चक्र को भी प्रभावित कर रहा है। पिछले काफी सालों से लगातार सर्दियों के दिनों हो रही कमी और गर्मी के दिनों में बढ़ोत्तरी हो रही है ।हमें इस जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर साफ तौर पर देखने को मिल रहा है । इस बार सीजन में प्रदेश में 15 दिसंबर से ठंड पड़नी शुरू हुई जबकि अक्टूबर के बाद से ही सर्दियों का सीजन शुरू हो जाता है।

वहीं दिसंबर तक कड़ाके की ठंड लोगों को महसूस होने लगती थी जबकि इस साल दिसंबर में कड़ाके की ठंड नदारद रही जबकि जनवरी महीने में ठंड की चरम स्थितियां बनीं हुईं हैं आमतौर पर मक्र संक्रांति के बाद सर्दी कम होने लगती है परन्तु उसके उल्टा ही देखने को मिल रहा है पिछले साल फरवरी में रिकॉर्ड तोड तापमान में बढ़ोतरी और मार्च अप्रैल में रिकॉर्ड तोड तापमान में गिरावट दर्ज हुई थी साथ ही साथ मई नौतपा नहीं तपा यानी मौसम में लगातार उलट फेर हो रहे हैं। ऐसे में सर्दियों के दिन कम हो रहे हैं। यह इंसानों के साथ-साथ फसल चक्र को भी प्रभावित कर रहा है। तापमान में हुआ फेरबदल सीधे तौर पर मानव और सभी जीवों को विभिन्न बीमारियों के रूप में प्रभावित करता है। इसके साथ ही पेड़ पौधे और कृषि फसलों के उत्पादन को भी प्रभावित करता है।

अगर बात करें हरियाणा एनसीआर दिल्ली की तों यहां पर लगातार मौसम की चरम परिस्थितियां बनी रहती है सर्दी में पारा शून्य के आसपास पहुंच जाता है। हरियाणा एनसीआर दिल्ली में में गंभीर कोल्ड वेब की स्तिथि बनी रहती है। वहीं गर्मी में पारा 47.0 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है और हिट बेव से गंभीर हिट बेव की स्थिति बनी रहती है वहीं इस साल मानसून बारिश की गतिविधियों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यहां सामान्य बारिश से सामान्य से अधिक अभी तक हों चुकी है हरियाणा एनसीआर दिल्ली में ठंड शुरू होते ही दीपावली त्यौहारी सीजन में वायु गुणवत्ता में बड़ी गिरावट देखने को मिलती है। हरियाणा एनसीआर दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक 350-400 तक पहुंच जाता है जो बहुत गंभीर और सोचनीय स्थिति होती है कहीं न कहीं मानव के अमानवीय कृत्य और व्यवहार जिनमें पेड़ों की कटाई,खनन कार्य, परिवहन के साधन, उधोगों, अनियंत्रित जनसंख्या, नगरीकरण, जहरीली गैसों का स्राव ,ग्रीनहाउस प्रभाव, कुडे कर्कट व पेड़ों को जलाने की गतिविधियां, ईंट भट्ठे, पर्यावरण प्रदूषण, गंदगी के बड़े बड़े ढेर, शीतलक उपकरणों का प्रयोग,जहरीले पदार्थ और पानी का फैलाव, से यानी हरियाणा एनसीआर में मौसम में चरम परिस्थितियां देखने को मिल रही है।

हालांकि की इस प्रकार की मौसमी गतिविधियां प्रकृति के आधीन है परन्तु इन चरम परिस्थितियों में मानव के अमानवीय व्यवहार और कृत्य इन गतिविधियों की स्पीड में बढ़ोतरी कर देते हैं। इस आमजन की भागीदारी से ज्यादा से पौधारोपण और मानवीय कार्यों में संलग्न और भूमिका से प्रकृति के शोषण पर कंट्रोल कर विनाश की रफ्तार पर ब्रेक लग सकता है।ओजोन- क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और खपत में कटौती करना है, ताकि वातावरण में उनकी उपस्थिति घटाई और ओजोन परत की रक्षा की जा सके। मौजूदा रुझानों से इस दिशा में भले ही अच्छी प्रगति देखने को मिली है। ओजोन परत की सुरक्षा सुनिश्चित करना सबका कर्तव्य है।

लिहाजा ऐसे उपकरणों को खरीदने पर जोर देना होगा, जो ओजोन परत के लिए नुकसानदेह न हों। प्रदूषण पर नियंत्रण, दावानल पर रोक और पौधारोपण पर जोर देना भी इस दिशा में महत्वपूर्ण होगा।ओजोन के स्तर में गिरावट के परिणामस्वरूप ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों को रोकने में अक्षम हो जाती है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पौधों और फसलों की वृद्धि भी प्रभावित होती है। पैदावार में गिरावट से लेकर पोषक तत्वों में कमी आ जाती है। सामुद्रिक पारितंत्र पर भी इसका पड़ता है, जिससे समुद्री जीवों की जीवटता और प्रजनन क्षमता के साथ-साथ समुद्री खाद्य शृंखला भी प्रभावित होती है।

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