Shardiya Navratri 2024 : रोहतक जिले में मां के भक्तों ने पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा अर्चना की। श्रद्धालुओं घरों में पूजा कर घर-परिवार के कुशलता की कामना की। देवी मंदिरों में आए मां के भक्तों के जयकारे से मंदिर परिसर गूंजते रहे। श्रद्धालुओं की भोर से ही दर्शन के लिए भीड़ लगी रही।
वहीं माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री जी के सानिध्य में शारदीय नवरात्र में सोमवार को मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना के लिए मंदिर में सुबह से ही भक्तों ने मां जगदम्बे के दरबार में माथा टेक सुख-समृद्धि, शांति, दीर्घायु, खुशियाली और कष्टों को दूर करने के लिए मन्नतें मांगी। यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।
मां स्कंदमाता की पूजा से जीवन मे सुख, शांति आती है। कार्यक्रम में प्रात: 4 बजे श्री दुर्गा स्तुति पाठ, सत्संग, भजन, कीर्तन व गद्दीनशीन साध्वी मानेश्वरी देवी ने मां की कथा और जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। नवरात्रों में मां भक्ति पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। भक्तों ने परिवार सहित अखंड ज्योत के दर्शन किए।
मां स्कंदमाता की भक्ति से नि:संतान व्यक्ति को संतान की प्राप्ति होती है : साध्वी मानेश्वरी देवी
मान्यता है कि मां स्कंदमाता की पूजा करने से मोक्ष के द्वार खुलने के साथ नि:संतान व्यक्ति को भी संतान की प्राप्ति हो जाती है। मां की भक्ति ही जीवन का सत्संग है और सत्संग सभी सुखों का खान है। ये प्रवचन गद्दीनशीन साध्वी मानेश्वरी देवी ने नवरात्र महोत्सव के उपलक्ष्य में भक्तों को दिए। मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, दो हाथ में कमल का फूल, एक भुजा ऊपर की तरफ उठी हुई है और एक हाथ से अपने पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है। इनका वाहन सिंह है। उन्होंने कहा कि जिन्हें सत्संग से प्रेम है, वही भक्ति कर सकते हैं। संतों का साथ, महापुरुषों के वचन को मनयोग पूर्वक सुनना ही भक्ति है। जो गुरुमुख होते हैं वही अमृत का पान कर सकते हैं। संतों की संगति के समान संसार में दूसरा कोई लाभ नहीं है।
बलि चढ़ा दो अपने क्रोध, लोभ का : साध्वी
उन्होंने कहा कि बलिदान कर दो मां के चरणों में अपने स्वार्थ व दुर्गुणों का। बलि चढ़ा दो अपने काम-क्रोध, लोभ व हिंसक प्रवृति की। मां तुम्हारे इन अवगुणों को नष्ट कर दे, ऐसी मां से प्रार्थना करो। उन्होंने कहा कि हम नवरात्रों में जिस कन्या के स्वरूप की मां मानकर पूजा करते हैं, व्यवहारिक जीवन में हम उसे केवल उपभोग की वस्तु मान बैठे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हमने नारी की प्रतिमा को पूजने का बीड़ा उठाया है, न कि नारी को पूजने का। जिस घर में मां बहन व बेटीयों का सम्मान होता है वहां नारायण का वास होता और मां लक्ष्मी की सम्पूर्ण कृप्या बरसती है।