रोहतक : फंगल इंफेक्शन पर वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने भी खतरनाक फंगल डिजीज से निपटने के लिए नए रिसर्च और डेवलपमेंट की तत्काल जरूरत बताई गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फंगल बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, जो चिंता का विषय हैं। इसलिए हम सभी को मिलकर इसके संबंध में रिसर्च करनी चाहिए और नाॅन कल्चर परीक्षण भी देखने चाहिए।
यह कहना है पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ.एच.के. अग्रवाल का। वह शनिवार को माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा इंडियन सोसाइटी ऑफ मेडिकल माइकोलोजिस्ट के साथ मिलकर लेक्चर थियेटर वन में रिसेंट्स अपडेट्स इन फंगल इंफेक्शन विषय पर आयोजित एक दिवसीय सीएमई में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए थे।
इस अवसर पर उपस्थित चिकित्सकों को संबोधित करते हुए कुलपति डाॅ.एच.के. अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान परिदृश्य में फंगल संक्रमण का उपचार बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि मधुमेह और इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड स्थिति में ये संक्रमण बढ़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि निदान में देरी एक बड़ी चुनौती है और नॉन-कल्चर तकनीकें बहुत महत्वपूर्ण हैं। डॉ. अग्रवाल ने विश्वास जताया कि यह सीएमई सभी के लिए फलदायक साबित होगी और ज्ञानवर्धन करेगी।
डाॅ. एच.के. अग्रवाल ने बताया कि नमी और पसीने के कारण ये संक्रमण तेजी से फैलते हैं, खासकर मधुमेह और इम्यूनो कॉम्प्रोमाइज व्यक्तियों में। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि फंगल इन्फेक्शन के मरीजों की संख्या 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है जोकि चिंताजनक है।
निदेशक डाॅ.एस.के. सिंघल ने कहा कि फंगल इंफेक्शन का दायरा बढ़ रहा है। हम सभी के द्वारा कोविड में म्यूकोरमाइकोसिस की तबाही देखी गई थी। उन्होंने कहा कि आज के समय में नए डायग्नोस्टिक टूल्स आ रहे हैं जो दिशा देने में योगदान करेंगे। डाॅ.एस.के. सिंघल ने बताया कि उपरोक्त से सबक लेते हुए हमें भविष्य की रणनीतियां तैयार करनी होगी ताकि हम इस प्रकार की महामारी से निपटने में पूर्ण रूप से सक्षम हों।
कुलसचिव डाॅ. रूपसिंह ने बताया कि फंगल इन्फेक्शन के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। लाल, खुजलीदार त्वचा, नाखूनों का रंग बदलना जैसे लक्षण दिखाई देने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
चिकित्सा अधीक्षक डाॅ.कुंदन मित्तल ने कहा कि संस्थान में बाहर से आए विशेषज्ञों का वें स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम ने फैकल्टी और छात्रों के लिए फंगल संक्रमण के प्रबंधन में नवीनतम जानकारी प्राप्त करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान किया, जिससे बेहतर रोगी परिणामों में मदद मिलेगी।
माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डाॅ. अर्पणा परमार ने सभी का स्वागत करते हुए बताया कि इस सीएमई का उद्ेश्य महामारी के बाद विशेष रूप से बढ़े हुए फंगल संक्रमणों के निदान और प्रबंधन में नवीनतम प्रगति पर अपडेट प्रदान करना है।
आर्गेनाइजिंग सैक्रेट्री डाॅ. पारूल पुनिया ने कार्यक्रम के अंत में सभी का धन्यवाद व्यक्त करते हुए बताया कि कार्यक्रम में फंगल संक्रमण के निदान के लिए नॉन-कल्चर आधारित तकनीकों पर चर्चा हुई, जैसे सेरोलॉजी, मॉलिक्यूलर और हिस्टोपैथोलॉजी। इसके साथ ही इम्यूनो कॉम्पिटेंट मरीज में फंगल कैविटी पर चर्चा।
डाॅ पारुल ने बताया कि सीएमई में बताया गया कि एंटी फंगल सुस्केप्टिबिलिटी टेस्टिंग फंगल संक्रमणों के उपचार में महत्वपूर्ण होती है।
इस अवसर पर डाॅ. डी आर अरोड़ा, डाॅ. उमा, डाॅ. मधु शर्मा, डाॅ. निधि, डाॅ.पीएस गिल, डाॅ. अंतरिक्ष, डाॅ. किरण बाला, डाॅ. रितु अग्रवाल, डाॅ.प्रियंका, डाॅ. सूची सहित दर्जनों चिकित्सक उपस्थित रहे।