रोहतक : शोध को प्राथमिकता पर रखकर कार्य कर रही पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (PGIMS) के डेंटल कॉलेज के चिकित्सकों ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि विश्वविद्यालय के चिकित्सक शोध के क्षेत्र में विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखते हैं।
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज रोहतक के प्रोफेसर्स द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण शोध कार्य वैश्विक स्तर पर सम्मानित हुआ है। डॉ. अमरीश भगोल (प्रोफेसर), डॉ. वीरेन्द्र सिंह (वरिष्ठ प्रोफेसर), और डॉ. राहुल द्वारा मैंडिबुलर फ्रैक्चर्स पर किए गए अध्ययन को प्रतिष्ठित अमेरिकन जर्नल ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी ने दुनिया के शीर्ष 50 सबसे अधिक उद्धृत अध्ययनों में शामिल किया है।
डेंटल कॉलेज के चिकित्सकों की इस उपलब्धि पर पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ एच के अग्रवाल ने बधाई देते हुए कहा कि यह मान्यता न केवल विश्वविद्यालय के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि चिकित्सा जगत में इसके व्यापक प्रभाव को भी दर्शाती है। डॉ अग्रवाल ने कहा कि हमें डॉ वीरेंद्र व डॉ अमरीश से प्रेरणा लेते हुए अधिक से अधिक मरीजों के हित में रिसर्च करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि चिकित्सकों की इस उपलब्धि के लिए प्राचार्य डॉक्टर संजय तिवारी भी बधाई के पात्र हैं जो हमेशा अपने चिकित्सकों के लिए प्रेरणा स्रोत रहते हैं।
जानकारी देते हुए डॉक्टर अमरीश भागोल ने बताया कि दुनिया भर में सड़क यातायात दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिनमें चेहरे की हड्डियों, विशेष रूप से मैंडिबल की चोटें आम हैं। मैंडिबुलर फ्रैक्चर्स मैक्सिलोफेशियल चोटों में सबसे प्रमुख हैं और रोगियों के कार्यात्मक पुनर्वास, सौंदर्यशास्त्र और जीवन की गुणवत्ता के लिए गंभीर चुनौतियाँ पेश करते हैं। उनकी शोध का योगदान इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में वैज्ञानिक समझ को बढ़ाने के साथ-साथ बेहतर रोगी परिणामों, उन्नत सर्जिकल प्रोटोकॉल और वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल रणनीतियों में भी सहायक है।
डॉ. अमरीश भागोल ने बताया कि उन्होंने मैंडिबुलर फ्रैक्चर्स के लिए एक व्यापक रूप से प्रशंसित वर्गीकरण प्रणाली विकसित की है, जिसे अमेरिकन जर्नल ऑफ ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी में प्रकाशित किया गया है। यह प्रणाली अब विश्वभर के सर्जनों द्वारा नियमित रूप से उपयोग की जाती है और उपचार योजना तथा मानकीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण औजार बन गई है। उन्होंने बताया कि इस वर्गीकरण प्रणाली ने मैंडिबुलर फ्रैक्चर्स के प्रबंधन में एक नए युग की शुरुआत की है।
प्राचार्य डॉक्टर संजय तिवारी ने बताया कि कुलगुरु डॉक्टर एच के अग्रवाल का हमेशा यही प्रयास रहता है कि संस्थान में अधिक से अधिक रिसर्च को बढ़ावा दिया जाए। डॉ अग्रवाल द्वारा रिसर्च की अहमियत को समझते हुए रिसर्च के लिए 5 करोड रुपए मंजूर किए गए हैं ताकि इस रिसर्च से प्रदेश के मरीजों को फायदा मिल सके आज उसी की वजह से डेंटल कॉलेज के चिकित्सकों को यह उपलब्धि मिल पाई है। डॉक्टर तिवारी ने बताया कि डॉ. वीरेन्द्र सिंह और डॉ. अमरीश भगोल के कई अन्य शोध कार्य भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं। दोनों विद्वानों ने संयुक्त रूप से लगभग 150 शोध प्रकाशनों में योगदान दिया है, जिन्हें अब तक लगभग 2,800 उद्धरण प्राप्त हुए हैं। उनके कार्यों को अमेरिका और ब्रिटेन में प्रकाशित प्रमुख पाठ्यपुस्तकों में भी उद्धृत किया गया है, जो उनकी वैज्ञानिक योगदानों के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को दर्शाता है।
डॉ तिवारी ने बताया कि डॉ. अमरीश भागोल और डॉ. वीरेन्द्र सिंह के पास ओरल और मैक्सिलोफेशियल सर्जरी में 25 वर्षों से अधिक का समृद्ध सर्जिकल अनुभव है। दोनों ने मिलकर 5,000 से अधिक सर्जरी सफलतापूर्वक की हैं, जिससे रोगी देखभाल, नैदानिक नवाचार और सर्जिकल प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण योगदान हुआ है। इस अवसर पर डॉ वीरेंद्र ,डॉ अमरीश, डॉ अरुण, सीओएफ राजेश मनोचा, सेक्रेटरी संजीव उपस्थित रहे।
डॉ. अमरीश भगोल और डॉ. वीरेन्द्र सिंह को अब मैंडिबुलर कंडिलर फ्रैक्चर्स के विषय पर दुनिया के शीर्ष 50 वैज्ञानिकों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह उनकी उत्कृष्ट योगदान और इस विशेषज्ञ क्षेत्र में वैश्विक प्रतिष्ठा को रेखांकित करता है।