Friday, September 20, 2024
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लोहड़ी के पीछे की मान्यता, जानें आग में क्यों डाली जाती हैं मूंगफली और तिल

लोहड़ी खुशी का त्योहार है। यह त्योहार सर्दियों के अंत और वसंत के आगमन का प्रतीक है। लोहड़ी की रात सबसे ठंडी रात मानी जाती है। यह त्यौहार पंजाबियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिस घर में नवजात बच्चे और विवाहित जोड़े की पहली लोहड़ी होती है, उस घर में शादी जैसा उत्साह भर जाता है और लोग पहली लोहड़ी भूनते हैं। लोहड़ी से कई लोक और पौराणिक कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं, जिसके कारण यह त्यौहार मनाया जाता है।

लोहड़ी पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत पूरे देश में मनाई जाती है। लोहड़ी के दिन लोग प्रसाद के रूप में लोगों को मूंगफली, रेवड़ी और फूल देते हैं। इससे पहले लोग शाम को सबसे पहले अलाव में रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाते हैं।

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पंजाब में लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता है। यह शब्द तिल और पत्थर से बना है। रोड़ी गुड़ और रोटी से बनाई जाने वाली डिश है। लोहड़ी के दिन तिल-गुड़ खाकर आपस में बांटने की परंपरा है। यह त्यौहार दुल्ला भट्टी और माता सती की कथा से संबंधित है। मान्यता है कि इस दिन माता सती ने प्रजापति दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था।

इसके साथ ही इस दिन मुगलों के आतंक से सिख लड़कियों की इज्जत बचाने वाले लोक नायक दुल्ला भट्टी की याद में भी लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। लोग मिलकर लोकगीत गाते हैं और ढोल बजाये जाते हैं।

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