Pregnancy Tourism : भारत में एडवेंचर टूरिज्म (Adventure Tourism), इको टूरिज्म (Eco Tourism) और मेडिकल टूरिज्म (Medical Tourism) जैसे पर्यटन के कई प्रकार मशहूर हैं। लेकिन लद्दाख का एक ऐसा गांव भी है, जो अपनी अनोखी परंपरा और प्रेगनेंसी टूरिज्म (Pregnancy Tourism) के लिए चर्चा में है।
यहां की अनोखी बात यह है कि विदेशी महिलाएं, खासकर जर्मनी से, इन गांवों में केवल एक मकसद से आती हैं—शुद्ध आर्य नस्ल (Pure Aryan Race) का बच्चा पैदा करना। लद्दाख के ये गांव हैं बियामा, गारकोन, दारचिक, दाह और हानू। इन गांवों में ब्रोकपा समुदाय के लोग रहते हैं, जो खुद को दुनिया के आखिरी बचे ‘शुद्ध आर्य’ (Pure Aryans) मानते हैं।
‘शुद्ध आर्य’ का दावा
ब्रोकपा समुदाय का दावा है कि उनकी नस्ल दुनिया की सबसे शुद्ध नस्लों में से एक है। यह दावा विवादित है, लेकिन यह उनके लिए गर्व का विषय है। नाजी युग के नस्लीय सिद्धांतकारों ने ‘मास्टर रेस’ (Master Race) का जो सिद्धांत गढ़ा था, ब्रोकपा खुद को उसी से जोड़ते हैं। इस समुदाय के लोग गोरे रंग, नीली आंखों और मजबूत जबड़े को अपनी पहचान बताते हैं।
ब्रोकपा लोगों की संस्कृति भी लद्दाख के अन्य समुदायों से अलग है। वे बौद्ध धर्म को मानते हैं, लेकिन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और बलि देने की प्रथा का पालन करते हैं।
क्या है प्रेगनेंसी टूरिज्म?
इंटरनेट के प्रसार से पहले इन गांवों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। लेकिन 2007 में रिलीज हुई डॉक्यूमेंट्री “Achtung Baby: In Search of Purity” ने इस विषय को उजागर किया। फिल्म निर्माता संजीव सिवन की इस डॉक्यूमेंट्री में एक जर्मन महिला ने कैमरे पर यह स्वीकार किया कि वह ‘शुद्ध आर्य शुक्राणु (Pure Aryan Sperm)’ की तलाश में लद्दाख आई थी।
डॉक्यूमेंट्री के अनुसार, यह कोई नया ट्रेंड नहीं है। ब्रोकपा समुदाय के पुरुषों और विदेशी महिलाओं के बीच ऐसे रिश्ते लंबे समय से चलते आ रहे हैं। इन विदेशी महिलाओं का मकसद ‘आर्यन बच्चों’ को जन्म देना होता है।
डॉक्यूमेंट्री के अजब किस्से
डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है कि एक जर्मन महिला, दारचिक गांव के एक ब्रोकपा व्यक्ति त्सेवांग लुंडुप के साथ लेह के एक रिसॉर्ट में छुट्टियां मना रही थी। उस महिला ने स्वीकार किया कि उसने ‘आर्यन बच्चे’ के लिए उस व्यक्ति को पेमेंट किया और उसके परिवार के लिए गिफ्ट भी लाई।
ब्रोकपा व्यक्ति ने कहा, “मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है। अगर मेरे बच्चे मुझे मिलने आएंगे और मुझे जर्मनी ले जाएंगे, तो यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।”
वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी
ब्रोकपा समुदाय के ‘शुद्ध आर्य’ होने के दावे का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। उनकी डीएनए जांच नहीं हुई है। उनकी शारीरिक बनावट और सांस्कृतिक कहानियों के आधार पर ऐसे दावे किए जाते हैं।
इंडियाना के डेपॉव यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मोना भान मानती हैं कि ‘प्रेगनेंसी टूरिज्म (Pregnancy Tourism)’ जैसी कहानियां केवल मिथक हो सकती हैं।
लद्दाख के ये गांव न केवल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं, बल्कि उनकी अनोखी परंपराएं और दावे उन्हें और भी रहस्यमयी बनाते हैं।