पटना/नई दिल्लीः चुनावी फार्मूला रचने में माहिर जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने अब तक भाजपा का गढ़ रहे पटना के कुम्हरार विधान सभा क्षेत्र से जाने माने गणितज्ञ के सी सिंहा को टिकट दिया है। लेकिन प्रशांत किशोर की वजह से आगामी बिहार चुनाव का गणित बुरी तरह उलझ गया है। बड़े से बड़े चुनावी गणितज्ञ यानी रणनीतिकार का दिमाग भी काम नहीं कर रहा है। प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज की उपस्थिति ने बिहार चुनाव के दो दावेदारों, एनडीए एवं इंडिया गठबंधनों को ‘अशांत’ कर दिया है।
अब तक प्रशांत किशोर विभिन्न पार्टियों को चुनावी जीत का गुरुमंत्र देने के लिए जाने जाते थे। उनकी योग्यता अपने क्लाइंट (ग्राहक) पार्टियों को जीत हासिल करने का फार्मूला देने की रही है । नए नए नारों एवं वादों से वोटरों के मन को लुभाने की कला ही उनका यूएसपी रहा है। लेकिन अब वे अपने पूर्व के मुवक्किलों को ही धूल चटाने के लिए खुद मैदान में कूद पड़े हैं- वादा है बिहार की तकदीर बदलने का। उनकी जनसुराज पार्टी की वजह से नवंबर में हो रहे चुनाव को समझना सचमुच एक ‘राकेट साइंस’ सा लग रहा है। बड़े बडे चुनावी रणनीतिकार भी यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि इस चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा।
प्रशांत किशोर बिहार की तकदीर बदलने के जो दावे कर रहे हैं वह सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन वोटर यह भी बखूबी समझ रहे हैं कि प्रशांत किशोर के हाथ में कोई जादू की छड़ी तो नहीं है। फिर बिहार में जातियों के मकड़जाल को तोड़ कर प्रशांत किशोर बिहार में बदलाव की कोई नई फिजा बना पाएंगे, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। बात भी आसानी से हजम नहीं होती। बिहार की तकदीर बदलने के ऐसे कई दावे असफल होते रहे हैं।
अब तक ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाते रहे प्रशांत किशोर अब खुद बिहार की तकदीर बदलने के लिए राजा बनने के लिए चुनावी मैदान में खम ठोक रहे हैं। वे अपनी पार्टी जनसुराज के जरिए बिहार में कोई नया अध्याय शुरु कर पाएंगे या नहीं, यह चुनाव के परिणाम के बाद ही पता चलेगा। इसकी भविष्यवाणी एक बेहद जटिल प्रश्न है जिसका हल किसी गणितज्ञ के पास नहीं होगा। बिहार में करीब 3 दशक से स्थापित सत्ता के समीकरणों को एक झटके में उलटफेर कर देने का लक्ष्य बहुत आसान कतई नहीं है।
2014 में नरेंद्र मोदी के चुनावी मशीन में प्रशांत किशोर ने ही ईंधन भरी थी। पीएम मोदी के लिए सुनने में असंभव से लगने वाले नारे प्रशांत किशोर ने ही गढ़े थे। उस समय भी यही फिजा बनी थी कि नरेंद्र मोदी देश की तकदीर बदल देंगे। कहने की जरुरत नहीं कि उस समय प्रशांत किशोर का फार्मूला जबरदस्त सफल हुआ। उन्होंने 2015 में नितीश कुमार के गठबंधन की चुनावी नैया पार लगाई थी। मोदी के अलावा ममता बनर्जी, तमिलनाडू के एम के स्टालिन और आंध्रप्रदेश के जगन मोहन रेड्डी को विजय श्री दिलाने में भी उनका बहुत बड़ा हाथ रहा।
अब वे आगामी चुनाव में अपनी ही पार्टी जनसुराज की नैया के खेवनहार हैं। मेहनत तो उन्होंने बहुत की है। अपना खून-पसीना-आंसू एक कर दिया है। इसमें कोई शक नहीं कि 3500 किलोमीटर से भी अधिक की पदयात्रा के दौरान उन्होंने वोटरों से गहन संपर्क किया है। उन्हें प्रभावित भी किया है लेकिन वे इस बार बिहार में बदलाव की बयार के वाहक बन सकेंगे या नहीं यह आने वाला समय ही बताएगा।