Rohtak News : एमपॉक्स, जिसे पहले मंकीपॉक्स के नाम से जाना जाता था, एक संक्रामक रोग है जो जानवरों से मनुष्यों में फैलता है, लेकिन जान का खतरा कम होता है। एमपॉक्स द्वारा उत्पन्न वैश्विक खतरे को देखते हुए डब्लूएचओ ने इसे पहले जुलाई 2022 में और अब फिर अगस्त 2024 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बीमारी के प्रति सचेत किया। यह कहना है पीजीआईएमएस के कम्युनिटी मेडिसन विभागाध्यक्ष डाॅ. नीलम कुमार का।
उन्होंने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि एमपॉक्स की खोज सबसे पहले वर्ष 1958 में शोध के लिए रखे गए बंदरों की कॉलोनियों में हुई थी, इसलिए इसका नाम मंकीपॉक्स पड़ा। इसे पहली बार 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एक मनुष्य में पाया गया था और वर्ष 2003 में अफ्रीका के बाहर पहला एमपॉक्स का केस संयुक्त राज्य अमेरिका में मिला जोकि संक्रमित पालतू कुत्तों के संपर्क से जुड़ा था।
एमपॉक्स वायरस के दो अलग-अलग जेनेटिक क्लेड हैं जिसमें पहले क्लेड में सेंट्रल अफ्रीकी (कांगो बेसिन) क्लेड जोकि 1ए व 1बी के नाम से जाना जाता है वहीं वेस्ट अफरीका वाली क्लेड को 2ए व 2बी के नाम से जाना जाता है। डाॅ. नीलम कुमार ने बताया कि एमपॉक्स की क्लेड 2 की प्रजाति से संक्रमित एक केस हाल ही में दिल्ली में भर्ती हुआ था जोकि घातक नहीं है। यह रोगी संक्रमित स्थानों के दौरे पर था और वहां के पर्यटकों के संक्रमण होने से भारत में आया है।
उन्होंने बताया कि एमपॉक्स रोग दूसरे देशों की यात्रा के बाद ,सॉस के द्वारा और त्वचा के संपर्क द्वारा एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैल सकता है।
उन्होंने बताया कि एमपॉक्स को फैलने से रोकने के लिए हमें सार्वजनिक स्थानों पर सावधानी के साथ -साथ, शीघ्र जांच व आईसोलेशन जरूरी है। वहीं मंकीपोक्स को फैलने से रोकने के लिए एवं इन मरीजों के बेेहतर इलाज के लिए पीजीआईएमएस में एक टीम गठित की गई हैं, जिसमें विभिन्न विभागों के चिकित्सक शामिल है।
वहीं संदिग्ध मरीज की जांच के लिए एक कमरा नामांकित किया गया है एवं कंफर्म केस के लिए एक आईसोलेशन वार्ड चिन्हित किया गया है। इस बीमारी के इलाज की तैयारी पीजीआईएमएस ने कर ली है। डाॅ. नीलम कुमार ने कहा कि मंकीपाॅक्स से किसी प्रकार के घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि देखभाल, जागरूकता व बचाव से हम इसके संक्रमण की चेन को तोड सकते हैं और पीजीआईएमएस ने मरीज के आने पर उसकी देखरेख के लिए पूरी तरह से तैयार है।