रोहतक। PGI के ट्रामा सेंटर में MLR मुसीबत बन गई है क्योंकि GDMO नहीं है। मारपीट या विवादों के केसों में डॉक्टर की एमएलआर बेहद जरूरी होती है। मारपीट के दौरान घायल हुए लोगों को मेडिकल के लिए पीजीआई के ट्रॉमा सेंटर भेजा जाता है। लेकिन, पीजीआई के ट्रॉमा सेंटर का पिछले दिनों GDMO बदल दिया गया। इससे यहां की व्यवस्था बिगड़ गई। नया कर्मचारी न आने से पिछले दो दिनों से एक भी एमएलआर नहीं काटी जा सकी हैं। जबकि इस दौरान करीब 15 से अधिक केस वहां पहुंच चुके हैं।
अब ट्रॉमा सेंटर में पीजी रेजिडेंट ने भी एमएलआर काटने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि वे पढ़ाई करें या एमएलआर काटकर कोर्ट के धक्के खाएं। यह काम नहीं करने के लिए दो बार पीजीआई प्रशासन को लिखकर दे चुके हैं। हालात ये हुई कि देर रात को भी ट्रॉमा सेंटर में एमएलआर काटने वाला कोई नहीं था। सुबह सभी की एमएलआर बनाई गई। इसे देखते हुए वीसी ने एक बैठक बुलाई जिसमें अधिकारियों के अलावा आठ विभागों के अध्यक्ष भी शामिल हुए। सभी को स्पष्ट कहा गया है कि अपने विभागों के पीजी स्टूडेंट्स को ट्रॉमा सेंटर में मेडिकोलीगल काम के लिए भेजा जाए, नहीं तो एक्शन भी लिया जा सकता है।
ऐसे में अब छात्रों को पढ़ाई प्रभावित होने का खतरा सता रहा है। क्योंकि फोरेंसिंक विभाग के जिन 15 छात्रों की ड्यूटी लगाई गई थी, वे 15 दिन की बजाए 6 महीने की ड्यूटी कर चुके हैं। इससे उनकी पढ़ाई पर असर हो रहा है। एमएलआर बनाने के लिए एनाटॉमी, एनेस्थिसिया, फोरेंसिंक, पैथोलॉजी, फिजियोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, पीएसएम, फार्माकॉलॉजी जैसे विभागों के स्नातकोत्तरों को ट्रॉमा सेंटर में जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर (जीडीएमओ) के रूप में काम करने के लिए कहा गया है।
डॉक्टर विभिन्न विभागों में विशेष स्नातकोत्तर प्रशिक्षण कर रहे हैं। वे पहले से ही नए एनएमसी पीजी पाठ्यक्रम का पालन कर रहे हैं और उन्हें इस पाठ्यक्रम के आधार पर अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करनी है। इन छात्रों को मेडिकोलिगल रिपोर्ट बनाना, पुलिस इंफोर्मेशन करना और एमएलआर बनाने के बाद कोर्ट में जाने का करना होगा। इससे सभी छात्र सकते में हैं कि उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी। बता दें कि एनएमसी के अनुसार छात्रों को ट्रॉमा सेंटर में सिर्फ प्रशिक्षण आदि के लिए भेजा जा सकता है।
आपको बता दें पीजीआई में ट्रॉमा सेंटर में एमएलआर संबंधी काम करने के लिए 8 जीडीएमओ लगाए गए थे। उनका काम रिपोर्ट बनाना ही था। लेकिन करीब 6 महीने पहले ट्रॉमा सेंटर के जीडीएमओ डॉ. इरफान पर आरोप लगे थे कि उन्होंने एमएलआर गलत बनाने के एवज में रुपये लिए हैं। यह केस सामने आते ही पीजीआई प्रशासन ने यहां लगे जीडीएमओ को दूसरे विभागों में भेज दिया था। अब न तो नए जीडीएमओ भर्ती किए जा रहे हैं, न ही किसी नियमित डॉक्टर को इस काम पर लगाया जा रहा है।
जीडीएमओ को दूसरे विभागों में भेजने के बाद फोरेंसिंक विभाग के पीजी छात्रों की ड्यूटी लगा दी गई थी। फोरेंसिंक विभाग के तीनों बैच के 15 छात्रों की ड्यूटी रोटेशन में यहां लगाई गई थी। नियम के अनुसार यह ड्यूटी 15 दिन के लिए होनी चाहिए, लेकिन जीडीएमओ नहीं होने से इन छात्रों ने 62 दिन तक ड्यूटी की। अब इन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए हैं, क्यों कि पढ़ाई प्रभावित होने का डर है। छात्रों ने 31 जुलाई तक का समय दिया था, लेकिन उन्हें किसी अधिकारी ने नहीं बुलाया। इसके बाद भी 27-28 को नया रोस्टर बना दिया गया और उसमें फोरेंसिंक विभाग के पीजी छात्रों का नाम भी लिखा गया।
अब हाउस सर्जन के भरोसे भी काम है। पीजी छात्रों ने दो बार नोटिस दिया है और 16 दिन पहले भी नोटिस देकर बताया कि 31 जुलाई से वे यहां ड्यूटी नहीं करेंगे। 1 अगस्त को अधिकारियों के कहने पर उन्होंने मॉर्निंग ड्यूटी कर ली, लेकिन दोपहर बाद चल गए। इसलिए मंगलवार को यहां के घायलों की एमएलआर नहीं कट पई। इसका जिक्र पुलिस ने अपनी एफआईआर में भी किया है। एमएलआर नहीं कटने के कारण केस से संबंधित लोगों की मुश्किल बढ़ गई है। क्योंकि केस में उन्हें एमएलआर की जरूरत होती है। इसके लिए अब उन्हें बाद में चक्कर लगाने होंगे। इसके लिए पीजीआई प्रशासन ने फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं बनाई है।