Saturday, July 19, 2025
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जानिए कब है अहोई अष्टमी व्रत, जाने पूजा विधि और कथा

संतान की खुशहाली और लंबी उम्र के लिए हरियाणा, राजस्थान, पंजाब समेत कई राज्यों में अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है। इस दिन सभी मां अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं। महिलाएं व्रत रखकर भगवान शंकर-पार्वती की उपासना कर संतान के उज्जवल भविष्य और वंश में वृद्धि की कामना करती है।

इस साल कब मनाया जायेगा अहोई अष्टमी व्रत 

इस साल 5 नवंबर 2023 को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जायेगा। इस दिन सभी मां अपनी संतान के लिए सुबह से शाम तक व्रत रखती हैं। फिर शाम में आकाश में तारों को देखकर व्रत खोला जाता है।

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त 

अष्टमी तिथि 05 नवंबर दोपहर 1:00 बजे से 06 नवंबर 3:18 बजे तक होगी और अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त 05 नवंबर शाम 5:42 बजे से शुरू होकर 05 नवंबर शाम 7:00 बजे तक रहेगा।

अहोई अष्टमी पूजा विधि 

  • इस दिन व्रत रखने के लिए आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ कपड़े धारण करें।
  • इसके बाद पूजा के लिए एक वेदी या पवित्र स्थान का चयन करें। दीवार को साफ करें और उस पर अहोई माता की तस्वीर बनाए या लगाएं। यह छवि आमतौर पर लाल मिट्टी या सिंदूर का उपयोग करके बनाई जाती है या एक मुद्रित चित्र या मूर्ति का उपयोग किया जा सकता है।
  • फिर अहोई माता की तस्वीर के सामने तेल या घी का दीपक जलाएं। आप अहोई माता को फूल, फल और मिठाई या हलवा का भोग लगा सकते हैं। कुछ जगहों पर अहोई माता को दूध और जल भी अर्पित करते हैं।
  • इसके बाद आप अहोई माता के मंत्रों का पाठ कर सकती हैं।
  • कुछ जगहों पर माताएं अपने बच्चों को अहोई अष्टमी से जुड़ी कथा सुनाती हैं। यह त्यौहार के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने में मदद करता है।
  • पूजा और मंत्रोच्चारण के बाद अहोई माता की आरती करें।
  • पूरे दिन माताएं बिना अन्न या जल ग्रहण किए व्रत रखती हैं। शाम को तारे देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है। कुछ महिलाएं आंशिक उपवास भी करती हैं जहां वे फल और दूध का सेवन करती हैं।
  • शाम के समय तारों को देखकर जल देने के बाद ही यह व्रत संपूर्ण माना जाता है और तारों को देखकर जल देने के बाद आप व्रत खोल सकती हैं।
अहोई अष्टमी कथा 

एक पुरानी कथा के अनुसार, एक गांव में एक साहूकार रहता था, जिसके सात बेटे थे। दिवाली से कुछ दिन पहले साहूकार की पत्नी अपने घर की पुताई के लिए खदान से मिट्टी लेने गई। जब वह कुदाल से मिट्टी खोद रही थी, तो अचानक उसकी कुदाल साही के बच्चे को लग गई, जिससे उसके बच्चों की मृत्यु हो गई। जिसपर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ। इसके बाद वह पश्चाताप करती हुई अपने घर वापस चली गई।

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फिर कुछ समय बाद साहूकार के सभी बेटों की मृत्यु हो गई। अपने बेटों के निधन के कारण साहूकार की पत्नी बेहद दुखी रहने लगी और उसने साही के बच्चों की मौत की घटना अपने पड़ोस की एक वृद्ध महिला को सुनाई, जिसपर वृद्ध महिला ने साहूकार की पत्नी को बताया कि आज जो बात तुमने मुझे बताई है, इससे तुम्हारा आधा पाप खत्म हो गया है। साथ ही उन्होंने साहूकार की पत्नी को अष्टमी तिथि पर अहोई माता तथा साही और साही के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करने को कहा।

साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर व्रत रखा और विधि- विधान से पूजा की। उसने प्रतिवर्ष नियमित रूप से इस व्रत को रखा। जिसके परिणामस्वरूप उसे सात पुत्रों की फिर से प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि तभी से अहोई व्रत पूरे विधि-विधान से किया जाता है।

 

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