भगवान श्री कृष्ण की पूजा में श्रृंगार के साथ-साथ कई चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। जन्माष्टमी की पूजा में खीरे का उपयोग जरुर किया जाता है। बिना खीरे के जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है।
जन्माष्टमी (Janmashtami) की पूजा में खीरे का क्या होता है महत्व
जन्माष्टमी की पूजा करने के लिए ऐसे खीरे का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें थोड़ा डंठल और पत्तियां लगी हों। कहते हैं ऐसे खीरे का इस्तेमाल करने से भगवान श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। वो भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं।
मान्यता है कि जब बच्चा पैदा होता है तब उसको मां से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है। ठीक उसी प्रकार जन्माष्टमी के दिन खीरे को उसके डंठल से काटकर अलग किया जाता है। ये भगवान श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने का प्रतीक माना जाता है। ऐसा करने के बाद ही विधि-विधान से पूजा शुरू की जाती है।
एक सिक्के की मदद से खीरा और डंठल को बीच से काट दें
जन्माष्टमी के दिन खीरे को काटने की विधि को नाल छेदन कहा जाता है। इस दिन पूजा के दौरान खीरे को भगवान कृष्ण के पास रख दें। रात में जैसे ही 12 बजे यानी भगवान कृष्ण का जन्म हो, उसके तुरंत बाद एक सिक्के की मदद से खीरा और डंठल को बीच से काट दें।
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