कुरुक्षेत्र : अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में भारत के कोने-कोने से आए शिल्पकारों की शिल्पकला व कलाकारों के लोक नृत्य ने एक अलग ही मुकाम पर पहुंचा दिया है। इन शिल्पकारों व कलाकारों द्वारा अपनी-अपनी शिल्प व नृत्य कला को बड़े ही अनोखे ढंग से पर्यटकों के सामने रखा जा रहा है।
कोई कश्मीर की वादियों से वहां के पारंपरिक वस्त्र लेकर आया है, तो कोई पंजाब की फुलकारी, कहीं राजस्थान की मिठाई सजी है तो कहीं मध्य प्रदेश के व्यंजन। इन सभी के बीच हर घर-मंदिर को सुगंधित करने वाली अगरबत्ती भी अपनी महक महोत्सव में बिखेर रही है।
अगरबत्ती का लघु कारोबार करने वाले संजय ने स्टॉल नंबर 789 पर बातचीत करते हुए कहा कि अगरबत्ती जिसके बिना हमारे भारत देश में पूजा अधूरी समझी जाती है। इसलिए श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पूरी तरह साफ-सफाई, प्राकृतिक समान और बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल करके उनके द्वारा सुगंधित अगरबत्ती बनाई जाती है। उनके द्वारा कई प्रकार के फूलों का इस्तेमाल करके अगरबत्ती बनाई जाती है। इन अगरबत्तियों को बनाने में कस्तूरी का भी इस्तेमाल किया जाता है जो ठंड के मौसम में ज्यादा सुगंध देती है। वह पिछले कई साल से गीता महोत्सव में आ रहे है।
इस महोत्सव में आकर उन्हें बहुत अच्छा लगता है। इस महोत्सव के माध्यम से उनकी अगरबत्तियों की काफी अच्छी सेल हो जाती है। इस महोत्सव के साथ-साथ वह देश में विभिन्न स्थानों पर लगने वाले मेलों आदि में भी अपना स्टॉल स्थापित करते है। उनकी द्वारा तैयार की गई अगरबत्तियों की कीमत 30 रुपए से लेकर 150 रुपए तक है।

