वाराणसी। मणिकर्णिका घाट पर बाबा शिव अपने गणों के साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं। जिसे मसान होली, भस्म होली और भभूत होली के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह होली कल यानि 29 फरवरी को खेली जाएगी। वैसे तो देश के हर राज्यों में इस साल होली का त्योहार 25 मार्च को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा, लेकिन मोक्ष की नगरी काशी में नागा साधुओं और शिव भक्तों की होली मनाने की अनूठी परंपरा है। मणिकर्णिका घाट पर साधु और शिव भक्त शमशान की राख से तैयार भस्म से होली अन्य जगहों से अलग, अद्भुत, अकल्पनीय और बेमिसाल मानी जाती है। होली से पहले घाट पर मसान की होली खेली जाती है। मणिकर्णिका घाट पर श्मशान नाथ बाबा के श्रृंगार और भोग से इस पर्व की शुरुआत होती है।
जलती हुई चिताओं की राख से होली
दरअसल, देशभर में होली और होरियारों की हुड़दंग और जोश त्योहार शुरू होने से पहले ही दिखने लगाता है। जहां मथुरा में श्री कृष्ण के भक्त फूलों, गुलाल-रंगों और लट्ठमार होली खेलते हैं तो वहीं बाबा की नगरी काशी में जलती हुई चिताओं की राख से होली खेली जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव खुद अपने भक्तों को भस्म से होली खेलने की अनुमति देते हैं। काशी के मर्णिकर्णिका घाट में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भस्म या मसान होली खेली जाती है, जिसमें भगवान शिव के भक्त जोरों-शोरों से भाग लेते हैं।
जानें क्या है चिता भस्म होली
फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष को पंचमी तिथि को पूरे देश में होली की धू्म देखने को मिलेगी, लेकिन बाबा के शहर की अनोखी भस्म होली रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाशमशान मर्णिकर्णिका घाट पर इस होली को खेलने को लोग इकट्ठा होंगे। सुबह से ही मर्णिकर्णिका घाट पर नागा साधु और सभी शिव भक्त एकत्र होने लगते हैं। यहां शिव भक्त अड़भंगी अंदाज से फागुवा गीत गाते हुए संदेश देते हैं कि काशी में जन्म और मृत्यु दोनों ही उत्सव है। यहां लोग चिताओं की भस्म से होली खेलते हैं और फिर जब मध्याह्न में बाबा के स्नान का वक्त होता है तो इस वक्त यहां भक्तों का उत्साह अपने चरम पर होता है।
क्यों मनाई जाती है भस्म होली ?
हिंदू वेदों और शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, होली के इस उत्सव में बाबा विश्वनाथ देवी देवता, यक्ष, गन्धर्व सभी शामिल होते हैं और उनके प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां जिनकों बाबा खुद इंसानों के बीच जाने से रोककर रखते हैं, लेकिन अपने दयालु स्वभाव की वजह से वो अपने इन सभी प्रियगणों के बीच होली खेलने के लिए घाट पर आते हैं। शिवशंभू अपने गणों के साथ चिता की राख से होली खेलने आते हैं। इसी दिन से चिता की राख से होली खेलने की परंपरा शुरू हुई। ऐसा मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट में हजारों सालों से चिताएं जलती रहती हैं। मसान की इस होली में जिन रंगों का इस्तेमाल होता है, उसमें यज्ञों-हवन कुंडों या अघोरियों की धूनी और चिताओं की राख का इस्तेमाल किया जाता है।
कैसे खेली जाती है चिता भस्म होली
- चिता भस्म होली काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं।
- इस आयोजन में सबसे पहले बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली की मध्याह्न आरती की जाती है।
- इसके बाद बाबा व माता को चिता भस्म और गुलाल चढ़ाया जाता है।
- इसके बाद चिता भस्म होली प्रारंभ होती है।
- मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि बाबा विश्वनाथ दोपहर के समय मणिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए आते हैं।