रोहतक। रोहतक के लाखनमाजरा स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री मंजी साहिब में कल से तीन दिवसीय होला मोहल्ला की धूम मचेगी। 74वां सालाना होला मोहल्ला के आयोजन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। 22 मार्च से आयोजन की शुरूआत होगी और 24 मार्च को कार्यक्रम का समापन होगा। देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु कार्यक्रम में पहुंचेंगे। तीन दिवसीय कार्यक्रम में नगर कीर्तन का भी आयोजन होगा। सेवा निशान साहिब का भी आयोजन होगा।
श्री मंजी साहिब में कार्यक्रमों की तैयारियां तेज
आयोजन की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के पदाधिकारियों ने बताया कि श्री मंजी साहिब गुरुद्वारे में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की तैयारियां तेज कर दी हैं। होला मोहल्ला कार्यक्रम में अखंड पाठ का भी आयोजन होगा। अखंड पाठ का शुभारंभ 22 मार्च को सुबह 10 बजे से होगा। जबकि अखंड पाठ और भोग का समापन से संबंधित कार्यक्रम 24 मार्च को सुबह 8.30 बजे से शुरू होंगे।
24 मार्च को निशान साहिब की सेवा सुबह नौ बजे से पांच प्यारों की निगरानी में निकाली जाएगी। नगर कीर्तन लाखनमाजरा चलकर गांव में होता हुआ दीवान हाल में सुबह 11 बजे पहुंचेगे। इसके बाद दीवान का आरंभ किया जाएगा। इस दौरान लंगर का भी आयोजन होगा। कार्यक्रम में विशेष रूप से हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के प्रधान भूपिंदर सिंह असंध, जनरल सेक्रेटरी रमनीक सिंह मान के अलावा सुदर्शन सिंह गावड़ी व परमिंदर कौर जींद भी रहेंगे।
गुरुद्वारे में 13 दिन ठहरे थे गुरु तेग बहादुर
हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के सदस्य सरदार हरभजन सिंह राठौर ने बताया कि लाखनमाजरा के संबंधित गुरुद्वारे का इतिहास गौरवान्वित करने वाला है। संबंधित गुरुद्वारे में वर्षों से होला महल्ला का आयोजन होता है। यहां कश्मीरी पंडितों की फरियाद पर दिल्ली में बलिदान देने से पूर्व यहां से गुजरे। इस दौरान यहां 13 दिन का प्रवास रखा था। इस स्थान पर अमृत कुंड भी है। यहां श्रद्धालु पहुंचकर स्नान करते हैं। यह अमृत कुंड भी गुरु तेग बहादुर की स्मृति में निर्मित कराया गया था। यहां वर्षभर अखंड पाठ का आयोजन होता है।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने शुरू की थी परंपरा
उन्होंने बताया कि श्री मंजी साहिब गुरुद्वारे में आयोजित होने वाले 74वें सालाना होला मोहल्ला की तैयारियां शुरू कर दी हैं। 22 मार्च, शुक्रवार से शुरू होने वाला आयोजन 24 मार्च रविवार तक आयोजित होगा। उन्होंने बताया कि इस त्योहार को दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक नए ढंग से मनाने की परंपरा शुरू की थी, जो आज इस बात का बात का प्रतीक बन गई है कि जीवन से जुड़े सारे रंग और सच्चा आनंद परमात्मा के बगैर अधूरे हैं। होली को होला मोहल्ला के रूप में मनाने की शुरुआत 1680 में किला आनंदगढ़ साहिब में गुरु गोबिंद सिंहजी ने खुद की थी। इसका मुख्य उद्देश्य सिख समुदाय को तन और मन से मजबूत बनाते हुए उनमें विजय और वीरता के जज्बे को दृढ़ करना था।
होला मोहल्ला पर्व का इतिहास
सिख इतिहास के जानकार बताते हैं कि होला मोहल्ला पर्व की शुरुआत से पहले होली के दिन एक-दूसरे पर फूल और फूल से बने रंग डालने की परंपरा थी लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसे शौर्य के साथ जोड़ते हुए सिख कौम को सैन्य प्रशिक्षण करने का आदेश दिया। समुदाय को दो दलों में बांटकर एक-दूसरे के साथ युद्ध करने की सीख दी। इसमें विशेष रूप से उनकी लाडली फौज यानि निहंग को शामिल किया गया, जो पैदल और घुड़सवारी करते हुए शस्त्रों को चलाने का अभ्यास करते थे। इस तरह तब से लेकर आज तक होला मोहल्ला के पावन पर्व पर अबीर और गुलाल के बीच आपको इसी शूरता और वीरता का रंग देखने को मिलता है। इस दौरा जो बोले सो निहाल और झूल दे निशान कौम दे के जयकारे गूंजते रहते हैं।