रोहतक। ग्लूकोमा को काला मोतिया या आंखों की रोशनी का चोर भी कहा जाता है। इस बीमारी से आंखों की रोशनी जा सकती है। दरअसल, ग्लूकोमा में आंखों की ऑप्टिक नर्व में खराबी आ जाती है। ऑप्टिक नर्व आंखों की रेटिना और दिमाग के बीच कनेक्शन का काम करता है। अगर ऑप्टिक नर्व डैमेज हो जाए तो दिमाग को संकेत नहीं मिलते और दिखना बंद हो जाता है।
लोगों को इस बीमारी के प्रति सचेत रहने के लिए रोहतक के सामान्य हड़ताल में 10 मार्च से 17 मार्च तक ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जा रहा है नेत्र विभाग में कार्यरत वरिष्ठ डॉक्टर सत्येंद्र वशिष्ठ ने बताया की ओपीडी में आने वाले मरीजों को इस बीमारी के प्रति जागरूक किया जा रहा है उन्होंने इस बीमारी के कारण, बचाव और इलाज के बारे में पत्रकारों को विस्तृत जानकारी दी है।
क्यों होता है काला मोतिया
डॉ वशिष्ठ ने लोगों को सचेत करते हुए बताया है कि जिन लोगों को शुगर , ब्लड प्रेशर या किसी को आंख में चोट लगी हो और जिनकी 40 साल की उम्र हो तो वे लोग साल में एक बार अपनी आंखों को जरूर चेक करवा ले। डॉक्टर की सलाह के अनुसार इलाज लेते रहें और लापरवाही से बचें। ग्लूकोमा, का प्रमुख कारण आंखों पर पड़ने वाला पेशर है। आँखों पर अत्यधिक दबाव पड़ने से आंखों के अंदर फ्लूड जम जाता है। इसके बाद जब फ्लूड इकट्ठा होता है तो ये बाहर निकलने लगता है। ये साइकिल चलता रहता है। जब ये साइकिल डिसबैलेंस होता है तो आंखों में समस्या होने लगती है। बढ़ती उम्र के साथ भी यह बीमारी होती है।
17 मार्च तक मनाया जायेगा ग्लूकोमा सप्ताह
रोहतक के सामान्य अस्पताल में 10 मार्च से 17 मार्च तक ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जा रहा है। अस्पताल में कार्यरत सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर सत्येंद्र वशिष्ठ ने लोगों को आगाह किया है कि वह काला मोतिया के प्रति लापरवाही ना बरते। उन्होंने कहा कि यह बीमारी हमारी आंख की रोशनी को खत्म कर देती है और नजर फिर कभी वापस नहीं आती है। इससे बचने के लिए हमें साल में एक बार जरूर अपनी आंखों का चेकअप करवाना चाहिए। खासतौर पर वे लोग जरूर ध्यान रखें जिन लोगों को ब्लड प्रेशर है शुगर है जिनके चश्मा का नंबर जल्दी-जल्दी बढ़ रहा है या किसी के परिवार में पहले से काला मोतिया है।
यह हैं बीमारी के लक्षण
डॉक्टर सत्येंद्र वशिष्ठ ने बताया की विशेष तौर पर देखा गया है कि इस बीमारी के कोई लक्षण सामने नहीं आते हैं। इस वजह से बीमारी का मरीज को पता नहीं चल पाता है। मर्ज बढ़ने के साथ धीरे-धीरे उसकी आंखों की रोशनी चली जाती है। उन्होंने बताया कि काला मोतिया दो प्रकार से होता है एक प्रकार में तो थोड़ा बहुत लक्षण सामने आता है जैसे आंखों में लाली हो जाना, सिर में तेज दर्द हो जाना या रोशनी में देखने पर आंख आसपास रंग-बिरंगे के घेरे बन जाना आदि। ये लक्षण होने पर हमें सचेत होना चाहिए।
लेकिन दूसरे प्रकार की बीमारी में कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। इसलिए जरूरी है कि नियमित अपनी आंखों का चेकअप करवाते रहें। साथ ही उन्होंने बताया कि अस्पताल में डॉक्टर से अपना पूरा इलाज करवाएं क्योंकि इसका इलाज काफी लंबा चलता है। इस बीमारी में पहले मरीज को दवाइयां से ठीक करने की कोशिश की जाती है। अगर दवाइयां से ठीक नहीं होता तो फिरलेजर द्वारा आंखों की नसों को ठीक करने की कोशिश की जाती है। अगर फिर भी ग्लूकोमा ठीक नहीं होता तो आखिर में मरीज का ऑपरेशन करना पड़ता है।