कविता, फरीदाबाद : केंद्र और प्रदेश सरकार की तरफ से शहर के विकास के लिए विभिन्न परियोजनाओं के तहत अरबों रुपये भेजे जा चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद शहर में विकास नाम की चीज कहीं खोजने के बाद भी दिखाई नहीं दे रही है। स्मार्ट सिटी परियोजना के दौरान सरकार द्वारा करोड़ों रुपये भेजे गए हैं। लेकिन इतना पैसा खर्च होने के बावजूद शहर किसी भी तरह से सुंदर दिखाई नहीं देता।
वहीं दूसरी तरफ विभिन्न तरह के विकास कार्यो के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो चुके है। लेकिन इसके बावजूद शहर सिर्फ दुर्दशा का शिकार होता नजर आ रहा है। शहर की सड़कों पर गड्ढे बने हुए हैं, सीवर लाइनें ओवरफ्लो हो रही है। गर्मी के मौसम में लोग पानी की किल्लत से जूझते हैं। वहीं दूसरी तरफ शहर में एक के बाद एक घोटालों का खुलासा हो रहा है। जिससे साफ है कि सरकार द्वारा भेजे गए पैसे का दुरूपयोग हो चुका है।
कहां गए अरबों रुपये?
शहर को सुंदर और स्वच्छ बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड का गठन भी किया था। लेकिन शहर को स्मार्ट बनाने के लिए नाम सिर्फ लीपापोती ही की जाती रही है। पहले से ठीक ठाक सड़कों को उखाड़ कर फिर से नया बना दिया गया। वहीं शहर की सडकों पर ठीक ठाक स्ट्रीट लाइटों के खंबे होने के बावजूद नए खंबे लगा दिये गए। स्मार्ट टॉयलेट की खरीद के नाम पर दो करोड़ रुपये व्यर्थ कर दिये गए। चौराहों पर लगाए गए करोड़ों रुपये के सीसीटीवी कैमरे और ट्रेफिक सिंग्नल लाइटें आए दिन खराब हो रही है। इसी तरह मुख्यमंत्री घोषणा के तहत भेजे गए करोड़ों रुपये से दीवारों पर टाइल्स लगाकर दशहरा मैदान हो सुंदर बनाया गया है। यह तो सिर्फ उदाहरण मात्र है।
चारों तरफ समस्याएं
स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए गए शौचालय भ्रष्टाचार के कारण जर्जर हो चुके है। अमृत जल परियोजना के तहत पानी और सीवर की लाइनें डालने के लिए करोड़ों रुपये आए थे। लेकिन शहर के लोग इस 45 डिग्री तापमान वाली झुलसा देने वाली गर्मी के मौसम में पानी की समस्या से जूंझ रहे हैं। शहर में ऐसा कोई इलाका नहीं है, जहां पानी की किल्लत और सीवर जाम की वजह से ओवरफ्लो होने की समस्या न हो। जगह जगह सीवर का गंदा पानी सड़कों पर बहता हुआ कहीं भी देखा जा सकता है। शहर में कुछ सड़कों का निर्माण तो हाल ही में शुरू हुआ है। लेकिन अन्य सड़कों की हालत किसी से छिपी नहीं है। सड़कों पर बने खतरनाक गड्ढों की वजह से लोग जान जोखिम में डालकर सड़कों पर चल रहे हैं। समस्याओं को देखकर लगता है कि सरकार का पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
200 करोड़ रुपये का घोटाले की जांच ही सीरे चढ़ पाई
दस साल में नगर निगम में अनेक घोटाले उजागर हुए हैं। लेकिन इनमें से सिर्फ 200 करोड़ रुपये का घोटाले की जांच ही सीरे चढ़ पाई है। इस घोटाले में भी जांच के नाम पर अब सिर्फ खानापुर्ति ही हो रही है। इस घोटाले की शहर में करीब दो साल तक जमकर चर्चा होती रही। जिसकी आड़ में नगर निगम में हुए अन्य घोटाले दब कर रहे गए। पैरिफेरल रोड घोटाले की जांच पिछले लंबे समय से लंबित पड़ी हुई है। इस दौरान करोड़ों रुपये का एलईडी लाइट घोटाला भी उजागर हुआ था। इसी तरह इस दौरान उजागर हुए अन्य कई घोटालों की फाइल आज दब कर धूल फांक रही है। अधिकारियों के भ्रष्टाचार का खामियाजा शहर के आम लोग उठा रहे हैं।